शारदे वर देना
– मधुकर वनमाली
बुद्धि नहीं कोई हर पाए
बस यही शारदे वर देना
अज्ञान मिटाओ तिमिरों के
माँ सरस्वती दुख हर लेना।
लेकर वीणा रंजित कर में
तुम मंद मंद मुस्काती हो
भाषा का देती ज्ञान हमें
सुर छंद तुम्हीं सिखलाती हो
ज्यों मधुर कहीं संगीत बजे
अनुराग भरा जीवन देना।
बुद्धि नहीं कोई हर पाए
बस यही शारदे वर देना।
मधुरस बोली में भर देना
स्वर लहरी कंठ सुनाते हों
वेदों का अविरल पाठ करें
सभी मंत्र सुरों में गाते हों
सब ब्रह्मज्ञान उपनिषदों पर
अधिकार हमें सुंदर देना।
बुद्धि नहीं कोई हर पाए
बस यही शारदे वर देना।
यह कलम सृजन हेतु चलकर
छंदों में अपनी बात कहे
भावों की बहाओ वैतरणी
गीतों में मृदु रसधार बहे
नित नए प्रखर दे बिंब मुझे
सदृश तुक अनुपम लय देना।
बुद्धि नहीं कोई हर पाए
बस यही शारदे वर देना।
वागीशा विराजो वाणी में
आना तुम हंसों पर चढ़कर
मधुमास में तेरा पूजन कर
हो पीत वसन पुलकित मधुकर
कुछ पुष्प चढाऊँ मैं कुमति
स्वीकार जरा तुम कर लेना।
बुद्धि नहीं कोई हर पाए
बस यही शारदे वर देना।
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संपर्क : मधुकर वनमाली
मुजफ्फरपुर (बिहार)
मो 7903958085