तो खुद को किनारा कर लिया
दुनियाभर का एकाकीपन
हृदय में अपने भर लिया
हम बह न सकें धारा के संग
तो खुद को किनारा कर लिया
आधी उम्र गुजार दी हमने
धाराओं को मिलाने में
कभी दूजों को मनाने में
कभी इस दिल को
समझाने में
ना दिल समझा,
ना वो समझे
रहना तन्हा गँवारा कर लिया
हम बह न सकें धारा के संग
तो, खुद को किनारा कर लिया
हवा के साथ बहना
सूखे पत्तों की निशानी हैं
मैं वो पत्थर हूँ जिसपर
वक़्त के थपेड़ों की कहानी है
जो धारा के साथ बहती हैं
बेजान लाशें हैं
मेरी विपरीत राहों ने
लिखी सच की कहानी है
ठोकर लाख खायें हमने सच्चाई की राहों में,
राह बदला ना , फिर भी
भले जख्मों को
आवारा कर लिया
हम बह ना सके, धारा के संग
तो खुद को किनारा कर लिया
अक्सर भीड़ में भी हम
तन्हा हो ही जाते हैं
भरी महफिल में, किसी की खोज में हम
खो ही जाते हैं
कहीं गुमनाम ना हो जाये
डर लगता है ये अक्सर
तभी तो आज अपने जीवन से
महफिलों का बंटवारा कर लिया
हम बह ना सकें, धारा के संग
तो खुद को किनारा कर लिया
यहाँ इन्सानियत नहीं मिलती
ये कलयुग है,
यहाँ इन्सानियत नहीं मिलती
कलयुग से इन्सानियत
कुछ इस तरह है जा रहा
कि आदमी ही आदमी को
बेचकर है, खा रहा
जायदाद के लिये,
भाई ने मारा भाई को
पैसे संग सौंप दिया
बेटी कसाई को
रिश्तों से इंसान
कुछ इस तरह मुक्ति पा रहा
कि आदमी ही आदमी को
बेचकर है खा रहा
माँ बाप बूढ़े हुए,
तो पराये हो गए
नई पीढ़ी के लिये
तो वो बलाये हो गए
अपना ही बच्चा,
है अब उन्हें सता रहा
की आदमी ही आदमी को
बेचकर है खा रहा
पैसों की चकाचौंध से
यूं खून फीके हो गए
संस्कारो को मारा,
तो नई सदी के हो गए
माँ के जलाये दीये से,
बेटा सिगरेट जला रहा
कि आदमी ही आदमी को
बेचकर है खा रहा
कलयुग से इन्सानियत
कुछ इस तरह है जा रहा
कि आदमी ही आदमी को बेचकर है खा रहा
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