खास कलम :: मधुकर वनमाली
सूरज
जो तिमिर मेरे मन बसता है
तेरे आने से जाता है
उत्साह मेरे इस जीवन का
बस सूरज तुम से आता है।
भले बदली का आना जाना
इस नील गगन में लगा रहा
भला कौन छिपा सकता बोलो
हर प्रात: प्राची में उगा रहा।
बाधाएं मेरे पथ में जो
उसी बदली सदृश आती हैं
तुम दिनकर राह बताते हो
मेरी नैया दौड़ी जाती है।
जो धूप जगाती है पथ पर
छाया में शांत हो व्याकुल मन
यह धूप-छांह का खेल अहो
खेलो मेरे संग जी भर कर।
कहां डरता हूं रजनी से अब
तूने है ऐसा तेज दिया
तुम धन्य रवि रश्मि संग जो
कुछ आशाओं को भेज दिया।
– मधुकर वनमाली, मुजफ्फरपुर
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