1
कभी बैठेंगे हम,सुख-दुख कहेंगे,
अगर ज़िन्दा रहे तो फिर मिलेंगे।
बहुत दुख-दर्द जीवन में सहे हैं,
ये कुछ दिन की तबाही भी सहेंगे।
हज़ारों कोस घर की दूरियाँ हैं,
है सर पर बोझ, पर आगे बढ़ेंगे।
बहुत-सी औरतें हैं, दुधमुँहे हैं,
सुलगती राह है, कैसे चलेंगे ।
यकीं है फिर नया सूरज उगेगा,
हमेशा तो नहीं दुर्दिन रहेंगे।
2
हँसी फूल-सी और बदन मरमरी है,
किसी जादूगर की तू जादूगरी है।
है लगता कभी सिन्धु-मंथन से निकली,
है लगता कभी स्वर्ग की तू परी है।
बताती है मुस्कान तेरे लबों की,
तेरे पास ही कृष्ण की बाँसुरी है।
अचानक ये क्या हो गया की लजाकर,
सकुचने लगी पाँखुरी-पाँखुरी है।
तुम्हारे बिना मानती ही नहीं यह,
करे क्या कोई प्रीति तो बावरी है।
दुआ कीजिए इसको मिल जाये मंज़िल,
समुंदर की लहरों पे नन्हीं तरी है।
न जाने कभी फिर मिलें ना मिलें हम,
न शर्माइये यह विदा की घड़ी है।
ये बंजारापन जाने कबतक चलेगा,
मेरे साथ ये कैसी आवारगी है।
3
मेरी हर ग़ज़ल हर कहानी में तुम हो,
मेरी ज़िंदगी ! ज़िन्दगानी में तुम हो।
तुम्हीं तुम हो साँसों की लय में हमेशा,
मेरी धड़कनों की रवानी में तुम हो।
सुबह झील में तुमको देखा कमल-सा,
निशा में लगा रातरानी में तुम हो।
कन्हैया की मुरली में तुम गा रही थी,
हमेशा लगा राधारानी में तुम हो।
तुम्हीं तो थी मीरा की दीवानगी में,
है लगता कि संतों की बानी में तुम हो।
तुम्हें गंगा-यमुना की लहरों में देखा,
धरा के वसन धानी-धानी में तुम हो।
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परिचय : वशिष्ट अनूप चर्चित ग़ज़लकार हैं.