1
आप भी तो ओंठ से कुछ बोलियेगा
चाँदनी बनकर नयन में डोलियेगा
सिर्फ़ मैं ही आपसे
कहता रहा हूँ
एक तट-सा टूटता
ढहता रहा हूँ
पोटली में क्या रखा है ? खोलियेगा
आप भी तो ओंठ से कुछ बोलियेगा
चुप्पियों का अर्थ
आखिर क्या लगाऊँ
लौट जाऊँ या
कदम आगे बढ़ाऊंँ
बेक़रारी इस कदर मत घोलियेगा
आप भी तो ओंठ से कुछ बोलियेगा
मैं अकेला सिर्फ़
यादों से घिरूँगा
दर्द आगे,और मैं
पीछे फिरूँगा
सब सज़ाएं एक पर मत ढोलियेगा
आप भी तो ओंठ से कुछ बोलियेगा
आपका ही नाम
क्यों है डायरी में
आप ही छाये हुए
क्यों शायरी में
एक दिन मेरी नजर से तोलियेगा
आप भी तो ओंठ से कुछ बोलियेगा
2
इक तरफ सर्दी गुलाबी
ज़िंदगी के सिर चढ़ी है, मौसमों की कामयाबी
इक तरफ यादें हरी हैं, इक तरफ सर्दी गुलाबी
रख दिया विकलांग करके
उम्र भर लाचारियों ने
चैन से जीने दिया कब
दर्द की इन पारियों ने
सूझती कुछ भी नहीं है, कार्यवाही अब जवाबी
इक तरफ यादें हरी हैं, इक तरफ सर्दी गुलाबी
छोड़ कर अपना ठिकाना
राह जीवन भर तलाशी
गेरुएंँ परिधान पहने
पर पहुँच पाए न काशी
हर कदम पर बस दुःखों के, ठाठ दिखते हैं नवाबी
इक तरफ यादें हरी हैं, इक तरफ सर्दी गुलाबी
आज विचलित-सा सुमन मन
खोजता है तितलियों को
एक रीता ताल, चिट्ठी
लिख रहा है बदलियों को
प्रेम का हर पाठ अपना, हो गया जैसे किताबी
इक तरफ यादें हरी हैं, इक तरफ सर्दी गुलाबी
चाँद-तारे तोड़ने की बात
अब लगती पुरानी
झील के तट पर बुलाती
अब नहीं संध्या सुहानी
खो गया जाने कहाँ पर, जोश सारा इंकलाबी
इक तरफ यादें हरी हैं, इक तरफ सर्दी गुलाबी
उम्र यह लंबी मिली है
बीच में कैसे मरें हम
सामने घर के खड़े हैं
पाँव पर कैसे धरें हम
द्वार पर ताला लगा है, और गुम है आज चाबी
इक तरफ यादें हरी हैं, इक तरफ सर्दी गुलाबी
आज हमने बंद डिब्बे
से पुराने ख़त निकाले
प्यार से जिनमें लिखे थे
साथ जीने के हवाले
गीत लिखने को बहुत हैं, दर्द की ये बेहिसाबी
इक तरफ यादें हरी हैं, इक तरफ सर्दी गुलाबी
3
गीतकार का स्वर है मेरा, कैद नहीं होगा तालों में
तुमने कैसये नाम लिख लिया, मेरा चुप रहने वालों में
एक हिमालय हूं तब ही तो
धीरे-धीरे पिघल रहा हूं
जितना मांज रही है पीड़ा
उतना उजला निकल रहा हूं
जितना अनुभव मिला उम्र से उतनी चांदी है बालों में
तुमने कैसे नाम लिख लिया, चुप रहने वालों में
लाख करो तुम टोका-टोकी
दर्द नहीं चुप रहने वाला
भरे जेठ में तुमने ही तो
आंखों को सावन दे डाला
बिना वजह ही नहीं सुर्खियां, मेरे गीतों के गालों में
तुमने कैसे नाम लिख लिया, मेरा चुप रहने वालों में
देख न पाती जिसको दुनिया
वो गुलर का फूल नहीं मैं
लहरें बस छू-छू कर चल दें
वो नदिया का कूल नहीं मैँ
स्वाभिमान की इस कलगी को पाया है मैंने सालों में
तुमने कैसे नाम लिख लिया, मेरा चुप रहने वालों में
मुझे पता है धोखा देंगी
श्याम घटाएं, इसीलिए तो
मेघ उड़ाकर ले जाएंगी
तेज हवांए, इसीलिए तो
संचय करके जल रखता हूं, अपने पांवों के छालों में
तुमने कैसे नाम लिख लिया, मेरा चुप रहने वालों में
झील नहीं, इक दरिया हूं
ठहरा कब हूं, सिर्फ चला हूं
राहगीर हूं, कड़ी धूप में
खूत तपा हूं, खूब जला हूं
वक्त नहीं शामिल कर पाया, मुझे कभी बैठे-ठालों
तुमने कैसे नाम लिख लिया, मेरा चुप रहने वालों में
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परिचय : दिनेश प्रभात चर्चित गीतकार और ‘गीत-गागर’ पत्रिका के संपादक हैं.