हौसले जगने लगे हैं
अब उन्हें
महसूस करके
हौसले जगने लगे हैं
एक अँधियारी अमा जो तोड़ती थी
और हमको मुश्किलों से जोड़ती थी
उस अमा के
पाँव सहसा
राह में थकने लगे हैं
रास्ते जो दूर हम से भागते थे
और ख़ुद को श्रेष्ठ भी कुछ आँकते थे
आज वो ही
रास्ते फिर
ख़ुद-ब-ख़ुद बिछने लगे हैं
अब हमारी चेतना भी जग गई है
और मन से भी निराशा भग गई है
अब हमें
ये दिन, सुहाने-
और भी लगने लगे हैं।
हमने हार न मानी
सर से गुज़रा
अक्सर पानी
फिर भी हमने हार न मानी
शंख हमारे रहे गूँजते
क़िस्मत से हम रहे जूझते
मौसम की तोड़ी मनमानी
दुख-दर्दों से भी न ऊबे
ज़िंदा रक्खे हैं मंसूबे
जीवन की गरिमा पहचानी
परिश्रम को ही पूजा माना
किया वही जो मन में ठाना
सारे काम किये लासानी।
शाप कोई फल रहा है
वक़्त ऐसा
आ गया जो
आदमी को छल रहा है
भावनाएँ जोड़ती हैं
कामनाएँ तोड़ती हैं
इस भयावह
प्रक्रिया में
नेह सारा जल रहा है
सम्वेदना नाकाम है
मन व्यर्थ ही बदनाम है
एक अतृप्त
आत्मा का
शाप कोई फल रहा है
डूबता उत्साह क्यों है
ज़िन्दगी गुमराह क्यों है
हौंसलों का
सूर्य क्यों अब
पस्त होकर ढल रहा है।
नेपथ्यों में कोलाहल है
मंचों ने
ख़ामोशी ओढ़ी
नेपथ्यों में कोलाहल है
सभी पात्र हैं गूंगे-बहरे
सिर्फ़ दिखाई देते चेहरे
दर्शक-गण भी
समझ रहे हैं
सोचा-समझा ये छल-बल है
भाषा और संवाद नहीं है
अभिनेता आज़ाद नहीं है
अभिनय में भी
नहीं दक्षता
ऐसा लगता सिर्फ़ नक़ल है
नहीं कहीं पर कुछ भी पूरा
सारा मंज़र लगे अधूरा
कहने का
मतलब है ये भी
पूरा नाटक ही असफल है।
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परिचय : विज्ञान व्रत साहित्य की विभिन्न विधाओं में निरंतर सृजनरत हैं