एक था हिरामन और एक उसकी प्रेयसी हीराबाई
– सीमा संगसार
एक था हिरामन और एक उसकी प्रेयसी हीराबाई । पुराने जमाने में नाच गान करने वाली बाई। जो दुनिया की नजरों में उन्मुक्त और बेलौस थी , लेकिन वह खुद एक अधूरी दास्तान थी ।हीराबाई की आँखों में अगर झांका जाए तो उसमें वह पीड़ा और कसक नजर आती थी , जिसे लोक जीवन के चितेरे लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ही देख सकते थे …
स्त्री के मन को पढ़ने वाले रेणु जी उसके रुप सौन्दर्य से कहीं अधिक उसके मन के सौन्दर्य के उपासक थे शायद इसलिए ही हीराबाई तन से ही नहीं मन से बहुत सुंदर थी । हिरामन के शब्दों में उसकी बोली एकदम फेनुगिलासी थी और उसके सानिध्य में वह बेला चमेली की तरह महमहा रहा होता है ।
चालीस वर्ष का एक भोले भाले गाड़ीवान की गाड़ी में अगर हीराबाई जैसी सुंदरी अकेली सवारी करे तो हीरामन की पीठ पर गुदगुदी महसूस तो होगी ही ….
एक बालविधुर नौजवान जो अपने बड़े भाई – भाभी के अनुशासन में बंधा हुआ जीवन जी रहा है । पत्नी का देहांत बचपन म़े ही हो चुका है कभी कोई सिनेमा या नाच नहीं देखने वाला एवं अन्य व्यसनों से दूर रहने वाला हीरामन के जीवन में भी एक स्त्री की रिक्तता थी ।
जब उसके सफर की शुरुआत हीराबाई से होती है तो ….
हिरामन के सामने सवाल उपस्थित हुआ, वह क्या कह कर ‘गप’ करे हीराबाई से? ‘तोहे’ कहे या ‘अहां?’ उसकी भाषा में बड़ों को ‘अहां’ अर्थात ‘आप’ कह कर संबोधित किया जाता है, कचराही बोली में दो-चार सवाल-जवाब चल सकता है, दिल-खोल गप तो गांव की बोली में ही की जा सकती है किसी से…..
साहित्य के प्रथम आंचलिक उपन्यास लिखने वाले रेणु की यह कहानी भी अपने आंचलिकता से अछूती नहीं है …
बिहारी ग्राम्य जीवन और बोली इस कहानी की जान है ।
हीराबाई का अपनी बोली में गीत सुनाने के लिए इसरार करने पर हीरामन कहता है …
इस्स! इतना सौक गांव का गीत सुनने का है आपको! तब लीक छोड़ानी होगी. चालू रास्ते में कैसे गीत गा सकता है कोई!’
हिरामन ने बाएं बैल की रस्सी खींच कर दाहिने को लीक से बाहर किया और बोला,‘हरिपुर हो कर नहीं जाएंगे तब.’
चालू लीक को काटते देख कर हिरामन की गाड़ी के पीछेवाले गाड़ीवान ने चिल्ला कर पूछा,‘काहे हो गाड़ीवान, लीक छोड़ कर बेलीक कहां उधर?’
हिरामन ने हवा में दुआली घुमाते हुए जवाब दिया,‘कहां है बेलीकी? वह सड़क नननपुर तो नहीं जाएगी.’ फिर अपने-आप बड़बड़ाया,‘इस मुलुक के लोगों की यही आदत बुरी है. राह चलते एक सौ जिरह करेंगे. अरे भाई, तुमको जाना है, जाओ. …देहाती भुच्च सब!’
जैसे कन्या को डोली में पर्दे से ढंक कर कहार उठा कर चलते हैं ठीक उसी तरह हीरामन अपनी इस नवेली दुलहन को जो उसे मीता कहकर पुकारती है लेकर चलता है ….
‘लाली-लाली डोलिया में
लाली रे दुलहिनिया
पान खाए…!’
हिरामन हँसा। …दुलहिनिया …लाली-लाली डोलिया! दुलहिनिया पान खाती है, दुलहा की पगड़ी में मुँह पोंछती है। ओ दुलहिनिया, तेगछिया गाँव के बच्चों को याद रखना। लौटती बेर गुड़ का लड्डू लेती आइयो। लाख बरिस तेरा हुलहा जीए! …कितने दिनों का हौसला पूरा हुआ है हिरामन का! ऐसे कितने सपने देखे हैं उसने! वह अपनी दुलहिन को ले कर लौट रहा है। हर गाँव के बच्चे तालियाँ बजा कर गा रहे हैं। हर आँगन से झाँक कर देख रही हैं औरतें। मर्द लोग पूछते हैं, ‘कहाँ की गाड़ी है, कहाँ जाएगी? उसकी दुलहिन डोली का परदा थोड़ा सरका कर देखती है। और भी कितने सपने…
इन हसीन सपनों के बीच हीरामन सबकी नजर बचाते बीच बीच में एक नजर भर झांक लिया करता था अपनी.प्रेयसी का चेहरा ….
इसी सफर में हीरामन के साथ – साथ कोसी घटवारिन की भी कहानी साथ – साथ चलती है …
दरअसल दोनों दो नहीं एक ही कहानी होती है जिसे हीरामन अपनी गीतों के जरिए व्यक्त करता है ।
हीराबाई तकिए पर केहुनी गड़ा कर, गीत में मगन एकटक उसकी ओर देख रही है. …खोई हुई सूरत कैसी भोली लगती है!
हिरामन ने गले में कंपकंपी पैदा की
‘हूं-ऊं-ऊं-रे डाइनियां मैयो मोरी-ई-ई,
नोनवा चटाई काहे नाहिं मारलि सौरी-घर-अ-अ.
एहि दिनवां खातिर छिनरो धिया
तेंहु पोसलि कि नेनू-दूध उगटन …
अपनी सौतेली माँ से पीड़ित घटवारिन जो कि लोक कथा पर आधारित कहानी की एक पात्र है । हीराबाई उस गाने में इतना खो जाती है कि वह खुद घटवारिन बन जाती है। घटवारिन की सौतेली माँ के द्वारा उसका किसी व्यापारी से सौदा किया जाना या फिर हीराबाई का कंपनी में नाच गान के लिए भेजा जाना जीवन की एक ही घटना तो थी …..
यहाँ इस दो पात्रों के साथ ही स्त्री जीवन की जिस बेवसी और पीड़ा को दर्शाया गया है वह मर्मांतक है ….
प्रेम हर स्त्री की चाहना होती है । वह हमेशा एक ही कल्पना करती है कि उसका प्रेमी उसे भरपूर प्रेम करे लेकिन हमेशा उसकी चाहत का सौदा होता है …
एक स्त्री बेमोल बिक कर अंत में बेमौत मारी जाती है ….
हीराबाई का घर बसाने का सपना सपना बनकर रह जाता है । हीरामन को अपने दिल के बजाय उसके हाथों में रुपये थमाती है ….
हिरामन टूटे हुए दिल से उसे लेने से इंकार कर देता है …
रेलगाड़ी की धुंएं सी जिन्दगी में सवार होकर हीराबाई उसके जीवन से बहुत दूर चली जाती है ….
हिरामन चोरी चमारी की चीजों को कभी न ढोने , बांस न ढोने के साथ – साथ आज तीसरी कसम खा रहा होता है कि कभी किसी कंपनी वाली अकेली जनानी को अपनी सवारी गाडी पर नहीं बिठाएगा ….
इस पूरी कहानी को पढ़ते वक्त आप हिरामन और हीराबाई के साथ बैलगाड़ी पर कच्चे पक्के रास्तों पर हिचकोले खाते मूक दर्शक की तरह चलते रहेंगे…
आंचलिक शब्दों के साथ – साथ रेणु जी शब्दों की ध्वन्यात्मक प्रयोग के लिए भी जाने जाते हैं जिसे आप गाड़ीवान के बैल हांकने वक्त मुंह से टि टि टि टि की आवाज के साथ सुन सकते हैं …