चूहा-बिल्ली संवाद
– डॉ भावना
चूहे ने बिल्ली से कहा- तुम सताती रही हो, सदियों से हमें
है, तुम्हारा जमाना अब लद गया
दुम हिलाती भागोगी डर कर तुम
जनता ने है सत्ता, हमें दे दिया ।
है, नहीं वो जमाना जिसमें कभी
तूने बच्चों के मेरे चबाये थे सर
अब वो बातें, वो जज़्बात कुछ भी नहीं
तेरे बच्चों की लाशें, मिलेंगी डगर
मैं ये ऐलान करता हूँ – ऐ बिल्ली सुन
जाकर छुप जाओ तुम कहीं बिल में
मुझसे लड़ने की सोचो न तुम कभी
बम – बारुद है रखा अपने पास में
अब बिल्ली गुर्राई – अबे ओ चूहे सुन
चूहे ही रहोगे सदा ही तुम
है, हमारा जमाना नहीं है गया
डरना तो हमने सीखा ही नहीं
चाहे जनता ने सत्ता तुम्हें है दिया
है ये परम्परा सदियों से आ रही
हम चबायेगें अब भी तेरे बच्चों के सर
अब भी हैं वो हीं बातें वो जज्बात हैं
हम सीने फुलाये चलेगें डगर
मैं भी ऐलान करता हूँ – ऐ चूहे सुन
वक्त है जाओ छुप जाओ तुम बिल में
भूलकर भी न सोचो हमसे लड़ने की
हो बम – बारुद रखा , भले पास में
वक्तव्य बिल्ली का सुन चूहे ने
दौड़ लम्बी लगायी, चुहियों के संग
हम तो अपलक खड़ देखते ही रहे
हमने देखा उतरते कृत्रिमता का रंग