विशिष्ट कवि :: मधुकर वनमाली
कस्तूरबा
- मधुकर वनमाली
बड़े नसीब वाले थे बापू
उन्हें तुम जो मिली थी,बा
और तुम्हारा यह नाम
कहलाती तुम जो,माँ
न तो उन का दिया
और न हीं उन के कारण
बल्कि हम सब के प्रति
तुम्हारे निष्कपट वात्सल्य
का है परिणाम, निर्विवाद।
बापू भी कसते थे न, बा
तुम्हारी निष्ठा और सद्गुणों को
अपनी निर्मम कसौटी पर
पर तुम एक तेज पुंज प्रकाशमान
अफ्रीका हो या हिन्दुस्तान
था उन्हें भी यह भान
बापू भी तो करते थे तुम्हारा ,मान।
माना वंचित थी,बा
तुम किताबी ज्ञान से
पर ज्ञान हीं सब है?
शायद नही
तुम सगुण थी
श्रद्धा-भक्ति की आभा में
आलोकित ,सूर की गोपियों सम
तेजस्विनी, मृदुभाषिणी
उपालंभ तुम्हारे
उस अधनंगे फकीर को
उद्धव की तरह चकित कर जाते थे।
अफ्रीका की वो बदनाम जेलें भी
कहां कर सकी पार
धैर्य का सिंधु तुम्हारा
क्या थे स्त्रोत,कहो न बा
तुम्हारी अपरिमित शक्ति के
शायद गीता और रामायण
तुम्हारी निष्ठा या सद्गुण
धन्य थे बापू तुम
जो मिली ऐसी सती सीता
सह सकती तुम्हारे साथ
अगणित वनवास।
व्याधि में भी तज देती
पथ्य जो होता अखाद्य
अनुसरण बापू तुम्हारा
गृहस्थ हो या वैराग्य
चुपचाप सही कठोरता
ना हीं जताया अधिकार
बापू तुम सचमुच धन्य हीं थे
बा जो तुम्हें मिली थी।
छू भी कहां पाया बा
आलस्य कभी तुम्हें
जरावस्था में भी
आश्रम की रसोई में
निर्विकार,करती सब काम
भूखे प्यासे वत्स तुम्हारे
कहां बिना जाते जलपान।
मिला भले महलों का वैभव
कैद कहां रह सकते प्राण
खोजती अपने सेवाग्राम
उड़ गए प्राण पखेरु तेरे
अंत हुआ जीवन निष्काम
गोरे फिरंगी शासन की
हिला तो दी चूलें तमाम
और जाते-जाते भी
कर गई तुम बा
बापू का लक्ष्य आसान।
कैसे इतना उठी उपर
सिद्ध जीवन हुआ कैसे
शिक्षा दीक्षा भी मिली न
नभ को तू ने छुआ केसे
संस्कार बल से पूर्ण पातिव्रत्य
वसुधैव कुटुंबकम् का प्रमाण
देख जो जो लेती थी,बा
तुम सब को एक हीं समान।
बा,कस्तूर बा
हृदय सुरभित था तुम्हारा
भरा परिमल हो उस में जैसे
किसी कस्तूरी मृग का
बनाता जो तुम्हें
दयामयी, गुणवान
और मेरे बापू से भी महान्
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