विशिष्ट कवि :: श्यामल श्रीवास्तव
मां
- श्यामल श्रीवास्तव
1
एक मुकम्मल शब्द है मां
मां एक मुकम्मल जिन्दगी
जिन्दगी की मुकम्मल कविता का
रुहानी अहसास–
मां ही तो है।
2
हर दौर में होती है मां
बदलते जाते हैं दौर-पे-दौर
बदल जाता है सबकुछ
नहीं बदलती है- मां
3
मां तकलीफ में भी दुआ देती है
कहते हैं कोई मां बहुत रोयी थी
उनके आंसुओं से ही धरती पर
फूल खिले थे पहली बार
तब से आज तक कोमल भावनाओ
की अभिव्यक्ति बनते हैं फूल।
4
किस्से, कहानी और कविताओं में
जैसे ही उतरती है मां
भींग जाती है आंखें
मां का अहसास ही
एक मुकम्मल कविता है
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