लघुकथा :: डॉ.पूनम गुजरानी

भीगा-भीगा प्रेम

  •                                                                                              – डॉ. पूनम गुजरानी

 

“कभी-कभी बहुत छोटी सी बात ग्रंथि बन जाती है जो बाद में किसी न किसी बीमारी के रूप में बाहर आती है इसलिए मन की बात कह देना बहुत जरूरी है ।आज मौका है आपके लिए अगर आप किसी को सॉरी बोलना चहाते हैं तो घबराएं नहीं, कहकर खुद को हल्का कर लें” कहते हुए वो मोटिवेशनल स्पीकर ने सामने बैठे श्रोताओं से बोलने का आग्रह किया।

कुछ देर मौन पसरा रहा। थोङ़ी देर बाद शुभम् उठा, धीरे-धीरे कहना शुरू किया “सर, बहुत वर्षों से अपनी पत्नी को सॉरी बोलना चाहता था पर नहीं बोल पाया।

बात उस समय की है।जब बङ़े भैया की शादी हुई। शादी गांव में थी। दो दिन के बाद हम सब लोग शहर के लिए रवाना हुए पर हम शहर पहूंचते इससे पहले  ही एक जबरदस्त एक्सीडेंट में हमने भैया को खो दिया। परिवार पर वज्रपात….जब परिवार संभला तो बहू की सूनी मांग का ख्याल आया। हाथों की मेहंदी उतरने से पहले जिसका जीवन उजाङ़ हो गया था अब उसके बारे में सोचना था। पिताजी का ख्याल था कि जो हो गया सो हो गया पर अब इस  लङ़की को बिलखते नहीं देख सकते।सब कुछ ठीक करने के लिए इसकी शादी छोटे बेटे के साथ हो जाए तो अच्छा रहेगा। मुझसे पूछा गया पर पारिवारिक स्थितियों को देखते हुए मैं कुछ कहने की स्थति में नहीं था। हमारी शादी हो गई पर अप्रत्याशित इस घटनाक्रम को मैं शायद हजम नहीं कर पाया था फलत: एक लम्बा समय बीतने के बाद ही मैं अपने पति धर्म का पालन कर पाया।आज हमारे दो बच्चे हैं…., हम खुशहाल दंपति हैं…..,अगले दो साल बाद हम अपनी सिल्वर जुबली मनाएंगे…. पर शुरू के दो वर्ष मेरी पत्नी ने कैसे गुजारे होंगे…., कैसे बिना प्रेम के भी वो मेरे प्रति समर्पित यह पाई होगी…., कैसे कभी किसी को अहसास तक नहीं होने दिया कि बंद कमरे में भी हमारी दिशाएं अलग-अलग थी…., कैसे धीरे-धीरे उसने मेरे मन में जगह बनाई….. ऐसे बहुत से प्रश्न जो मैं पूछना चाहता था पर कभी पूछ नहीं पाया…. बहुत बार माफी मांगना चहाता था….., बताना चाहता था कि उन दिनों मैं किस कशमकश से गुजर रहा था….., माफी मांगना चाहता था…., पूजा करना चाहता था कि उसने बिना किसी प्रतिवाद के हमारे मां-पिताजी की बात को माना और सदैव उसका मान रखा….. कहते-कहते फफक-फफक कर रो पङ़ा शुभम्। श्रोताओं के बीच बैठी पत्नी की आंखों से आंसुओं की गंगा प्रवाहित हो रही थी।

भीगे-भीगे से इस प्रेम ने वहां बैठे हर श्रोता की आंख को भिगो दिया था।

 

 

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