पुस्तक समीक्षा : मुकेश दुबे
रूमानी कलेवर में गंभीर चिंतन सहेजती कहानियाँ डार्क चॉकलेटी आवरण पर रखा कप, कप से उठती भाप में नज़र आते दो दिल और सुर्ख गुलाब...
आलेख : डॉ संजीव जैन
रागदरबारी : मानवीय संवेदना के भौथरेपन का प्रतिदर्श रागदरबारी मानवीय संवेदना के निरंतर भौंथरे होते जाने की कहानी है। इसको पढ़ते हुए पाठक के मन...
विशिष्ट कहानीकार : ऊमा झुनझुनवाला
पूनम का चाँद हम चाहे दुनिया के सामने जितने भी बहादुर बनते फिरें मगर असल जगह अपनी बहादुरी ना दिखा पाने का ग़म या फिर...
विशिष्ट कवयित्री : कोमल सोमरवाल
1 फासला- (स्त्री एकालाप) तुम चलते रहे पौराणिक कथाओं का ताज पहने मैं कसती रही अपने ऐबों के चोगे का फीता तुम अप्रैल की गोधूलियों...
विशिष्ट गीतकार : डॉ. राम वल्लभ आचार्य
1 मन में इतनी उलझन मन में इतनी उलझन जितने सघन सतपुड़ा वाले वन, हल्दीघाटी हुई जि़ंदगी चेरापूंजी हुए नयन । जयपुर जैसे लाल गुलाबी...
खास कलम : अंजना बाजपेयी
1 तेजाब कुछ आवाजें उठीं कुछ कलम से दर्द बहा कुछ लोगों के मन पिघल गये .. एक माँ की आँखों से आँसू बहते रहे...
विशिष्ट कवि : विजय सिंह
जंगल जी उठता है महुआ पेड़ के नीचे गांव की लड़कियों की हँसी में जंगल है जंगल अब भी जंगल है यहाँ गोला - बारूद...
आलेख : प्रसून लतांत
गांधी ने महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा महात्मा गांधी महिलाओं को रूढ़ियों और कुप्रथाओं से मुक्त करने और स्वतंत्र रूप से व्यक्तित्व विकास के...
विशिष्ट गजलकार : ज्ञान प्रकाश विवेक
1 तमाम घर को बयाबां बना के रखता था पता नहीं वो दिये क्यों बुझा के रखता था बुरे दिनों के लिए तुमने गुल्लकें भर...