‘ग़ज़ल एकादश’ की ग़ज़लें आम आदमी के करीब :: विनय
'ग़ज़ल एकादश' की ग़ज़लें आम आदमी के करीब ...
हिंदी ग़ज़ल का नया लिबास :: डॉ.जियाउर रहमान जाफरी
हिंदी ग़ज़ल का नया लिबास - डॉ.जियाउर रहमान जाफरी हिंदी कविता की...
समय की आवाज़ का प्रतिबिंब ‘अभी दीवार गिरने दो’ :: डॉ पंकज कर्ण
समय की आवाज़ का प्रतिबिंब 'अभी दीवार गिरने दो' ...
विशिष्ट कवि :: मणि मोहन
शाम शाम ढ़लते ही अपने घरों की तरफ लौट गए परिंदे आज फिर अपनी परछाईयाँ गिरा गए मेरी छत पर । बिटिया के लिए ज़िन्दगी...
विशिष्ट कहानीकार :: श्यामल बिहारी महतो
मंसूबा - श्यामल बिहारी महतो उन दिनों पत्नी के साथ मेरा भारत चीन जैसा ताना तनी चल रही थी ।...
विशिष्ट ग़ज़लकार :: विजय कुमार स्वर्णकार
1 अपने मित्रों के लेखे- जोखे से हमको अनुभव हुए अनोखे -से हमने बरता है इस ज़माने को तुमने देखा है बस झरोखे से ज़िन्दगी...
ख़ास कलम :: जयप्रकाश मिश्र
फागुनी दोहे - जयप्रकाश मिश्र होली दस्तक दे रही, प्रेम, नेह, अनुराग। क्यों यौवन में भोगती, गोरी तुम बैराग।। जोगीरा...
खिड़की सिखाती हैं मुझे अंदर रहते हुए कैसे देखा जाता है बाहर :: चित्तरंजन
खिड़की सिखाती हैं मुझे अंदर रहते हुए कैसे देखा जाता है बाहर - चित्तरंजन प्रगतिशील चेतना को समर्पित यह...
विशिष्ट गीतकार :: हीरालाल मिश्र मधुकर
1 थक गई संवेदना को पंख दे दो प्यार के खिलते कँवल कुम्हिला रहे हैं । आँख का पानी सिमटता जा रहा है अंकुरित श्रद्धा...
ख़ास कलम :: मधुकर वनमाली
बरसाणे की बावरी बरसाणे की बावरी,राधा सुंदर नाम। धवल सरीखी दूध जो,मीत मिला घनश्याम।। वनमाली यह सोचते,अलग हुआ जो रंग। हंस मिले ज्यों काग से,...