विशिष्ट ग़ज़लकार :: विजय कुमार स्वर्णकार

1 अपने मित्रों के लेखे- जोखे से हमको अनुभव हुए अनोखे -से हमने बरता है इस ज़माने को तुमने देखा है बस झरोखे से ज़िन्दगी...

खिड़की सिखाती हैं मुझे  अंदर रहते हुए कैसे देखा जाता है बाहर :: चित्तरंजन

खिड़की सिखाती हैं मुझे अंदर रहते हुए कैसे देखा जाता है बाहर               - चित्तरंजन प्रगतिशील चेतना को समर्पित यह...