ख़ास कलम :: डाॅ. अफ़रोज़ आलम
ग़ज़ल क्या अजब लुत्फ़ मुझे सब्र के फल में आए जैसे नुज़हत कोई रुक-रुक के महल में आए हाय वो इश्क़ की नैरंग-ए-तमन्ना मत पूछ...
ग़ज़ल क्या अजब लुत्फ़ मुझे सब्र के फल में आए जैसे नुज़हत कोई रुक-रुक के महल में आए हाय वो इश्क़ की नैरंग-ए-तमन्ना मत पूछ...