विशिष्ट गीतकार :: कुँअर उदय सिंह अनुज

फसलों-सा कट जाओ जैसे मुस्कातीं हैं सुबहें, वैसे तुम मुस्काओ। बहो हवा-सा रिश्तों में तुम, पेड़ों जैसा झूमों। पत्थर भी हों राहों में तो, लहरें...