विशिष्ट गीतकार : आदर्श सिंह निखिल
1 प्रेम प्रत्यंचा सँभाली भाववाही तीर साधे मन हुआ तरकश तिलिस्मी भावनाएँ भर अपरिमित दंड दृढ़ विश्वास का झुक चेतना अतिरेक संचित हो रहा कोदंड...
विशिष्ट गीतकार : अंकिता कुलश्रेष्ठ
मुक्तक 1 अाधार छंद:गीतिका छंद प्रीति की ही रीति का शुभ धाम है राधा-किशन प्रेम में लिपटी सुबह औ'र शाम है राधा-किशन दूर रहकर भी...
लघुकथा : तारकेश्वरी तरु ‘सुधि ‘
प्रेम जैसे ही फोन उठाया वो बोली मेरे जीवन में आपने रंग भरे हैं । मैं कर्जदार हूँ आपकी । अपने घर आ गई हूँ...
लघुकथा : कामिनी पाठक
अहसास का बंधन वेे अतीत के पल भी कितने सुनहरे थे। चुपके -चुपके मिलना ,माता-पिता का डर , समाज का डर । वो पहली बारिश...
लघुकथा : सुरेखा कादियान ‘सृजना’
राधिका ''राधिका इतने साल से तुम्हें बुलाने की कोशिश कर रही हूँ, पर तुम हो कि मानती ही नहीं | ऐसी भी क्या जिद कि...
विशिष्ट गीतकार : डॉ रवींद्र उपाध्याय
वसन्त आ गया ! कलियों की कनखियाँ, फूलों के हास क्यारियों के दामन में भर गया सुवास बागों में लो फिर वसन्त आ गया !...
खास कलम : मनोज अहसास
मनोज अहसास की कविताएं एक कुछ जिंदगियां होती हैं सीलन भरे अंधेरे कमरों की तरह जिनके खिड़की दरवाज़े मुद्दत से बंद हैं वहां कोई भी...
संत ब्रह्मानन्द सरस्वती और उनका जीवन दर्शन : डॉ मुकेश कुमार
संत ब्रह्मानन्द सरस्वती और उनका जीवन दर्शन - डॉ मुकेश कुमार जब सूर्य का उदय होता है तो अन्धकार का विनाश निश्चित ही होता है। कस्तूरी अपनी सुगन्ध वातावरण में फैलाकर सारे पर्यावरण को सुगन्धित बना देती है। उसी प्रकार विश्व कल्याण के लिए व अज्ञान के अन्धकार को समाप्त करने के लिए इस पवित्र धरा पर भगवान किसी न किसी महापुरुषों, सन्तों के रूप में अवतार लेता है। क्योंकि जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि का स्वरूप मनुष्यों पर नास्तिक, पापी, दुराचारी और बलवान मनुष्यों का अत्याचार बढ़ जाना तथा लोगों में सद्गुण-सदाचारों की अत्यधिक कमी और दुर्गुण-दुराचारों की अत्यधिक वृद्धि हो जाना। तभी किसी न किसी अवतार रूप की आवश्यकता पड़ती है। तब भगवान किसी अवतार रूप में जन्म लेता है। इसी प्रकार से गीता में भी बताया गया है- ”यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि र्भवति भारत। अभ्युत्थान धर्मस्य तदात्माने सृजाम्यहम्।।“1 अर्थात् (भारत)-हे भारत वंशी अर्जुन, (यदा,-यदा धर्मस्य (जब जब धर्म की), (ग्लानिः)-हानि और (अधर्मस्य)-अधर्म की, (अभ्युत्थानम्)-वृद्धि, (भवति)-होती है, (तदा)-तब-तब, (हि)-ही, (अहम्)-मैं, (आत्मानम्)-अपने-आपको (सृजामि), साकार रूप से प्रकट करता हूँ। तो इसी प्रकार की पुण्य आत्मा जो दयायुक्त हृदय वाली, यज्ञमय जीवन धारण करने वाली, श्रेष्ठ योगी व जिसके हृदय में पशु, पक्षी, वृक्ष,...
विशिष्ट कवि : प्रभात मिलिंद
मौसम की रंगरेज़ (गिरिजा कुमार माथुर की एक कविता को पढ़ते हुए) लोग कहते रहते हैं कि ख़्वाबों की बदौलत ज़िन्दगी के बरस नहीं कटते...
‘नयी नारी’ – स्त्री–मुक्ति का नया प्रस्थान : डॉ पूनम सिंह
‘नयी नारी’ – स्त्री–मुक्ति का नया प्रस्थान - डॉ पूनम सिंह सामाजिक , राजनीतिक चेतना के चेतना के क्रांतिकारी सर्जक बेनीपुरी ने जिस समय ‘नयी–नारी’...