बिखरती सद्भावनाओं को समेटती लघुकथाएं
-शिव सिंह ‘सागर‘
लघुकथा की दुनिया में सुरेश सौरभ पुराना और प्रतिष्ठित नाम है। मुझे इन दिनों उनके संपादन में संपादित लघुकथा का साझा संग्रह ‘मन का फेर’ पढ़ने का सुअवसर मिला। यकीन मानिए ये किताब अपने अनोखे अंदाज के लिए किताबों की दुनिया में एक अलग पहचान बनाएगी, ऐसा मुझे पूरा विश्वास है। लघुकथा एक ऐसी विधा है, जो अपनी लघुता और अपने अनूठे शिल्प के लिए निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही है। चर्चित हो रही है। यूँ तो लघुकथा लिखने और संपादित करने के लिए सामाजिक विसंगतियों के अनेक विषय हो सकते हैं, पर अंधविश्वासों, रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर केंद्रित लघुकथाएं प्रकाशित करना वाकई साहस और जोखिम भरा का काम है, संपादक सौरभ जी इसके लिए बधाई के पात्र हैं।
संग्रह में योगराज प्रभाकर की पहली लघुकथा ‘कन्या पक्ष’ मन द्रवित कर देती है और हमारे सामाज के दोहरे और दोगले चरित्र को उघाड़ कर रख देती है। लघुकथा की यही खुबसूरती है कि वह कम समय में ही मन पर, हृदय पर गहर असर करे। साधारण से साधारण इंसान को भी वह बहुत कुछ सोचने-विचारने के लिए मजबूर कर दे। डॉ. मिथिलेश दीक्षित की लघुकथा ‘डुबकी ‘ बेटी और बहू में अंतर को दर्शाती है। जहाँ बेटी खुद अपनी माँ को सही राह दिखाने का प्रयास करती है। डॉ. मिथिलेश की लघुकथा बेहद प्रेरणादायी है। मनोरमा पंत की लघुकथा ‘नाक’ समाज के झूठे व दिखावटी चरित्र को दर्शाती है। चित्रगुप्त की लघुकथा ‘ईनो’, ढोंगी पंडित के चरित्र को प्रस्तुत करती है। इसी क्रम में विजयानंद ‘विजय’ की लघुकथा ‘चंदा’ हो, या रश्मि लहर की लघुकथा ‘मुहूर्त ‘ हो, चाहे सतीश खनगवाल की ‘कंधे पर चांद’ , डॉ.पूरन सिंह की ‘भूत’, नीना मंदिलवार की ‘हीरो’, कल्पना भट्ट की ‘डर के आगे’ भगवती प्रसाद द्विवेदी की ‘आरोप’ ‘अंतर’ ‘पुण्य’ अछूतोद्धार, मधु जैन की ‘दहशत’, डॉ. राजेन्द्र साहिल की लघुकथा ‘औपचारिक अधयात्म’, सुकेश साहनी की ‘दादा जी’ डॉ. अंजू दुआ जैमिनी की ‘आश्रम’ या बलराम अग्रवाल, डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी, अखिलेश कुमार ‘अरुण’ विनोद शर्मा ‘सागर’, रमाकांत चौधरी, चित्त रंजन गोप,नेतराम भारती, सुनीता मिश्रा, प्रेम विज, मनोज चौहान, हर भगवान चावला अरविंद सोनकर, राजेन्द्र वर्मा, अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’, सुरेश सौरभ, बजरंगी भारत, अभय कुमार, भारती, गुलज़ार हुसैन,राम मूरत ‘राही’ सवित्री शर्मा ‘सवि’, आदि सभी साठ लघुकथाकारों की लघुकथाएं विचारणीय एवं संग्रहणीय हैं, जो सामाजिक कुरीतियों, रूढ़ियों और अंधविश्वासों पर एक व्यापक विमर्श साहित्य जगत में प्रस्तुत करती हैं, व्यापक दृष्टि से पूरा का पूरा संग्रह ही आज के भौतिकवादी इंसान की आंखों से पट्टी खोल फेंकने के लिए पर्याप्त कहा जा सकता है।
इस संग्रह में वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल की संपादकीय टिप्पणी लाजवाब है। आपका विश्लेषण किताब की सफलता में चार चाँद लगाता है। संपादक सौरभ जी ने लोकतांत्रिक मूल्यों पर अपनी सशक्त एवं विचारणीय संपादकीय प्रस्तुत की है। मेरे विचार में लघुकथाओं का सबसे सशक्त पक्ष है, उनका समाज को शिक्षित और जागरूक करने की क्षमता का होना, जो इस संग्रह में विद्यमान है। लघुकथा के इस संकलन का उद्देश्य समाज को शिक्षित करना है। जागरूक करना है, सदियों से व्याप्त अंधविश्वासों से उसे बाहर लाना है। इस लिहाज से यह संग्रह पढ़़ना नितांत आवश्यक हो जाता है।
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पुस्तक – मन का फेर (साझा लघुकथा संग्रह)
संपादक – सुरेश सौरभ
प्रकाशक – श्वेतवर्णा प्रकाशन नोएडा
पृष्ठ संख्या-144
मूल्य – 260 (पेपर बैक)
समीक्षक -शिव सिंह सागर बंदीपुर हथगाम फतेहपुर (उ. प्र.)
मो- 97211 41392