
‘मेरा चेहरा वापस दो’ ग़ज़ल का नया और मौलिक चेहरा : डॉ. भावना
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‘मेरा चेहरा वापस दो’ ग़ज़ल का नया और मौलिक चेहरा
– डॉ. भावना

‘मेरा चेहरा वापस दो’ छोटे बहर के मशहूर शायर विज्ञान व्रत का चुनिंदा ग़ज़लों का संग्रह है, जो किताबगंज प्रकाशन, राजस्थान से छपकर आया है। सौ पृष्ठों के इस संग्रह में कुल 67 ग़ज़लें हैं।संग्रह की प्रत्येक ग़ज़ल कई पाठ की माँग करती है।हर बार पढ़ते हुए शेर अलग अर्थों में हमारे सामने खुलते हैं और हमें चौंकाते हैं ।
संग्रह की भूमिका में हरेराम समीप जी कहते हैं कि” विज्ञान व्रत की ग़ज़लों की भाषा सहज ,सरल और आमफहम है।भाषा में बातचीत और संबोधन की आत्मीय शैली का एक नया स्वरूप हमें दिखाई देता है , जिसमें कभी वे प्रश्न करते लगते है , कभी आगाह करते तो कभी आत्मानुभूति को आत्मसंवाद के लहजे में शेर के भीतर नयी मार्मिकता भरते हुए दिखाई पड़ते हैं । चूंकि वे राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध चित्रकार भी हैं शायद इसीलिए कभी – कभी उनका शेर एक चित्र में तब्दील हो जाता है । उनके शिल्प का यही वैशिष्टय या जादू जगजाहिर है । उनकी यह प्रयोगशीलता यहां कई तरह से व्यक्त हुई है – कभी वे ग़ज़ल में मतले ही मतले रखते हैं , कभी एक या दो शब्दों वाले मिसरों में ग़ज़ल कह देते । लेकिन परिपक्वता देखिए कि मजाल है संकलन में कहीं एक शेर भी हल्का या आरोपित मिले । मुझे तो ये ग़ज़ल उर्दू की गुफ्तगू शैली और हिन्दी गीत की वाचिक शैली के इर्द गिर्द की ग़ज़लें लगती हैं । उन्होंने हिन्दी ग़ज़ल के विकास में एक महत्वपूर्ण काम यह भी किया है कि उन्होंने ग़ज़ल की परम्परा और आधुनिकता के मिश्रण से ग़ज़ल का एक नया और मौलिक चेहरा निर्मित किया है । चार दशकों तक केवल गिनती की दो – चार छोटी बहर के सीमित कलेवर में बड़ी बात कह जाना विज्ञान व्रत की सृजनक्षमता की सीमा नहीं सामर्थ्य है , जो चमत्कृत करती है । इस तरह वे हमें आश्वस्त भी करते हैं कि छोटी बहर के कैनवास में भी बड़ा शेर कहा जा सकता है । यहाँ इस संकलन में ऐसी अनेक अर्थपूर्ण अभिव्यक्तियाँ आपको मिल जायेंगी । मार्के की बात यह भी है कि आज भी विज्ञान अपने नए शेरों में पहले की तरह ताज़ादम नजर आते हैं । यहाँ हमें कहन की नयी भगिमाएं दिखाई देती हैं । उनकी लम्बी ग़ज़ल यात्रा में मानवीय संवेदना अपनी पूरी मुखरता से अभिव्यक्त हुई है । वे अपनी ग़ज़लों के माध्यम से कलात्मकता का अनूठा उदाहरण पेश करते हैं । वे हिन्दी के उन लोकप्रिय ग़ज़लकारों में शुमार हैं , जिन्होंने हिन्दी ग़ज़ल को नयी शैली , नयी भंगिमा तथा नए तेवर प्रदान किए हैं । शायद तभी वे इतने उद्धरणीय और स्मरणीय शेर हमें दे पाए हैं । “
उनके शेर की खासियत है कि बेहद आसान शब्दों में बड़ी से बड़ी बात कह जाते हैं ।
शब्द ब्रम्ह होता है । बात करने के लहजे से ही हम दिल की मनःस्थिति भाँप लेते हैं। हमेशा प्रेम से बात करने वालों का अगर लहजा बदल जाये तो रास्ता बदलने में ही भलाई है।शेर देखें –
उसने अपना लहजा बदला
मैंने अपना रास्ता बदला
पृष्ठ 13
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।उसे समूह में रहना पसंद है।एक दूसरे के दुख-सुख में शामिल होना,एक दूसरे की चिंता करना ही इंसानियत का तकाजा है।शेर देखें –
सब तक हूं
तब तक हूं
पृष्ठ 16
प्रेम के बगैर जीना यानी आत्मा के बगैर शरीर का होना है।हम जिससे प्रेम करते हैं ,उसे हमेशा अपनी आँखों के सामने देखना चाहते हैं ।प्रेम में विरह की आँच को सहना अलाव में जलने की तरह है।शेर देखें –
वह हम से अलगाव जिये
यानी एक अलाव जिये
पृष्ठ 20
प्रत्येक मनुष्य के पास अच्छे बुरे की समझ होती है।अगर मनुष्य अपनी आत्मा की आवाज सुने ,तो वो कभी गलती करे ही नहीं।अगर गलती हो भी जाए तो उसे वह स्वीकार करे।गलती की यही स्वीकारोक्ति खुद से अनबन करवा देती है।सच यही है कि इंसान पूरी उम्र समझौता और अनबन के बीच गुजार देता है।शेर देखें –
खुद से एक मुसल्सल अनबन
खुद से इक समझौता भी वो
पृष्ठ 22
मनुष्य के आत्मा में ईश्वर का निवास होता है। आत्मा रूपी ईश्वर से मिलने के लिए हमें अभिमान का मुखौटा त्यागना ही होगा ।शेर देखें –
ले मैं बाहर बैठा हूं
जा तू खुद से मिलकर आ
पृष्ठ 26
रिश्ते की बुनियाद विश्वास है।अगर विश्वास को ठेस लगे तो रिश्ता कहाँ टिक पाता है?जिसे हम जान से ज्यादा चाहते हों वही हमें गैर कहे तो सुनने को कुछ बचा नहीं रह जाता ।शेर देखें –
तूने मुझको गैर कहा
अब क्या सुनना बाकी है
पृष्ठ 29
जीवन सुख – दुख के विरह मिलन से निर्मित होता है।पल भर में किसी व्यक्ति को समझ पाना आसान नहीं होता।एक शायर के जीवन में फुलों भरे रास्ते कहाँ होते? शेर देखें –
पल भर में क्या समझोगे
मैं सदियों से बिखरा हूं
पृष्ठ 32
बहुत लोग हमेशा मुस्कुराते दिखते हैं।दरअसल यह मुस्कुराहट भीतर के ग़म को छुपाने का जरिया है ,ये कम ही लोग जानते हैं ।शेर देखें –
हरदम इतना खुश दिखता है
आखिर तू ये करता क्या है
पृष्ठ 34
दिल की तुलना शीशा से की जाती है। दिल टूटने पर केवल आँसू निकलते हैं पर शीशा टूटने पर एक आवाज होती है।जिसतरह शीशा टूट कर फिर नहीं जुड़ता ठीक वैसे ही दिल टूटने पर गाँठ पड़ ही जाते हैं।शेर देखें –
हम कुछ ऐसे टूटे मन से
जैसे सीसा बिखरे छन से
पृष्ठ 37
इसतरह हम देखते हैं कि ‘ मेरा चेहरा वापस दो’ ग़ज़ल- संग्रह का प्रत्येक शेर गूढ़ अर्थ लिये हुए है।अत्यंत सहज प्रतीत होती ये ग़ज़ले मानव जीवन का आइना है।
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पुस्तक- मेरा चेहरा वापस दो
ग़ज़लकार- विज्ञान व्रत
समीक्षक- डाॅ भावना
प्रकाशन – किताबगंज प्रकाशन
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