विशिष्ट कवयित्री :: प्रभा मजूमदार
संबल (1) मेरे पास सेनाएँ नहीं संबल है जागीरें, धरोहरें, वसीयतनामे नहीं कुछ संकल्प और स्वप्न हैं खेत खलिहान बाग…
संबल (1) मेरे पास सेनाएँ नहीं संबल है जागीरें, धरोहरें, वसीयतनामे नहीं कुछ संकल्प और स्वप्न हैं खेत खलिहान बाग…
शाम शाम ढ़लते ही अपने घरों की तरफ लौट गए परिंदे आज फिर अपनी परछाईयाँ गिरा गए मेरी छत पर…
दुख आप मरे हुए लोग हैं या अधूरे आदमी क्योंकि नहीं जानते दुख । आपके पास ना होंगे- पर बहुत…
पृथ्वी-पत्र तुमने लिखी है पृथ्वी मेरे नाम ! हरियाली उड़ेल दी तुमने नदी-नद के छोर वशवर्ती मेरे पत्ते, वृक्ष सहोदर…
मैं तुमसे मिलना चाहती हूं मैं तुमसे मिलना चाहती हूं सिर्फ़ एक बार मैं जानना चाहती हूं जवाब अपने बहुत…
ज्योति रीता की छह कविताएं लड़कियों का मन कसैला हो गया है इन दिनों लड़कियों का मन कसैला हो गया…
सुरेन्द्र रघुवंशी की पांच कविताएं अन्नदाता मौसम की मार से बड़ी होती है सरकार की मार कि किसी भी मौसम…
सुनो स्त्रियों आज महालया का शुभ दिन है और आज तुम्हारे नयन सँवारे जाने हैं तुम्हें कह दिया गया…
शान से जीने दो – मुकेश कुमार सिन्हा कभी बाँध कर देखो दो-ढाई किलो…
भावना की तीन कविताएँ 1 यह अलग बात है कि पर्दा उठ चुका है जिन्दगी के रंगमंच पर खेला जा…