खास कलम:: रेखा दूबे
मां – रेखा दुबे कितना सुंदर रूप तुम्हारा जैसे गंगा जल की धारा , शान्त , शाश्वत ,रूप बेल सा…
मां – रेखा दुबे कितना सुंदर रूप तुम्हारा जैसे गंगा जल की धारा , शान्त , शाश्वत ,रूप बेल सा…
ग़ज़ल 1 अब न संभले हम यहां तो जलजला हो जाएगा आदमी से आदमी का फासला हो जाएगा क्यों…
माँ – हेमा सिंह मैं रोई तो माँ भी मेरे दर्द से कितना रोई थी ! जीवन दान मुझे…
अब इन्तज़ार के मौसम उदास करते नहीं, अजीब है कि हमें ग़म उदास करते नहीं। कभी-कभी का ख़फ़ा होना ठीक…
सृजन भ्रम बुझी-बुझी आँखों और ऐंठती अँतड़ियों को जब गटक जाता है भूख का प्रचंड दानव तो हमारी बर्फ हो…
तग़य्युर ज़माना जब ख़ामोशी से नये तेवर में ढलता है तो मौसम ख़ुश्क होता है, शजर कपड़े बदलता है कभी…
“बीते साल के संदेश” था कठिन समय,वह बीत गया जो आई एक महामारी थी माना वह विपदा भारी थी कुछ…
सूरज जो तिमिर मेरे मन बसता है तेरे आने से जाता है उत्साह मेरे इस जीवन का बस सूरज तुम…
नज़्म – रेप शेख फ़रमाते हैं डार्विन झूठा था इंसान कब बंदर था? इंसान तो ऐसा कभी भी नहीं था…
नज़्म कान्हा। तुम्हारी याद में हूं बेकरार मैं, करती हूं लम्हा लम्हा फकत इंतज़ार मै। कहकर गए थे आओगे…