विशिष्ट ग़ज़लकार :: आशा पाण्डेय ओझा ‘आशा’

आशा पाण्डेय ओझा ‘आशा’ की पांच ग़ज़लें

1

कौनसी क़िताब है सांस-सांस ज़िंदगी

ढूँढती ज़वाब है सांस-सांस ज़िंदगी

 

किस तरफ़ घटे-बढ़े, चल सका पता नहीं

कौनसा हिसाब है सांस-सांस ज़िंदगी

 

हर घड़ी लुटा रही,  उम्र की तिजोरियां

ज्यों कोई नवाब है,सांस-सांस ज़िंदगी

 

क्यों धुँआ-धुँआ घिरा, चार सू हयात के

क्या कोई शिहाब है सांस-सांस ज़िंदगी

 

चुभ रही है किरचनें, काळजै की कोर में

गो कि इक अज़ाब है  सांस-सांस  ज़िंदगी

 

जो कभी नहीं उठा, कोशिशें हज़ार की

इक निहाँ हिज़ाब है सांस-सांस ज़िंदगी

 

बावले से हम सभी, उसके पीछे भागते

क्या अजब सराब है सांस-सांस ज़िंदगी

 

पेट,पीठ पर लिये,सुब्ह-सुब्ह दौड़ना

ख़ामख़ा ख़राब है सांस-सांस ज़िन्दगी

 

बेहिसाब आरज़ू, बेहिसाब जुस्तजू,

जबकि इक हबाब है सांस-सांस ज़िन्दगी

……………………………………………………

हयात- जीवन, शिहाब- आग , ज्वाला, लपट,  अज़ाब-पीड़ा, सराब- मृग मरीचिका, हबाब -बुलबुला

2

रेगिस्तानी आँखें उसकी,

फिर भी पानी आँखें उसकी

 

बना फकीरा यूँ तो कब का

पर सुल्तानी आँखें उसकी

 

रंग बदलती दुनिया देखे

भर हैरानी आँखें उसकी

 

देखा करती मुझको कितना

ज्यों दीवानी आँखें उसकी

 

कजरारी इतनी हैं जैसे

सुरमेदानी आँखें उसकी

 

सैलानी सपनों के लौटे

फिर वीरानी आँखें उसकी

 

उसको सबसे अलग दिखातीं

वे जापानी आँखें उसकी

3

जोश  बढ़ाकर चल कमली

शीश उठाकर चल कमली

 

ताड़ रहीं हैं  कुछ आँखें

देह छुपा कर चल कमली

 

छोड़ सहारे, हिम्मत रख,

हाथ छुड़ाकर चल कमली

 

दर्द मुक़ाबिल हैं तो हैं,

उन्हें हटाकर चल कमली

 

दुख दुनिया से छुप कर पी

नैन सुखाकर चल कमली

 

घात लगाए मौत खड़ी,

प्राण बचाकर चल कमली

 

दुनियादारी कीचड़ है,

पैर बचा कर चल  कमली

 

4

अच्छे-अच्छे पागल थे

आख़िर क्यों वे पागल थे

 

नोचा करते ख़ुद को ही

कुछ तो ऐसे पागल थे

 

पागलपन में भी छलिया

कुछ-कुछ वैसे पागल थे

 

हाँ वह दौलत थी साहब

लगभग जिसपे पागल थे

 

कुछ का न्यारा पागलपन

इक दूजे पे पागल थे

 

पागल खाने में देखा

बूढ़े,बच्चे पागल थे

 

दमखम वाले थे कुछ इक

कुछ इक कच्चे पागल थे

 

झूठे-मूठे उनमें कुछ

कुछ-कुछ सच्चे पागल थे

 

पागल खाना यह दुनिया,

दुनिया वाले पागल थे

5

कितनी मुश्किल सम्मुख है

मेरा कातिल सम्मुख है

 

आधा-वाधा क्या लेना

जब के कामिल सम्मुख है

 

किस विध आलम बदलेगा

पग-पग काहिल सम्मुख है

 

कैसे इसको समझाएँ,

दुनिया जाहिल सम्मुख है

 

जिसने मारा जीते जी,

सनकी आदिल सम्मुख है

 

चुनले इनमें से कोई,

हर इक काबिल सम्मुख है

 

कैसे ‘आशा’ काटेगी,

रस्ता बोझिल सम्मुख है

…………………………………………………………………………………………………….

परिचय : आशा पाण्डेय ओझा ‘आशा’ जानी-मानी ग़ज़लकार हैं. इनके छह संग्रह ‘दो बूँद समुद्र के नाम’, ‘एक कोशिश’, रोशनी की ओर’, ‘ज़र्रे-ज़र्रे में वो है, “वक़्त की शाख से’ और ‘कहाँ हम साँस लें खुलकर’ प्रकाशित हो चुके हैं. ये त्रिसुगंधि साहित्य ,कला व संस्कृति संस्थान की संस्थापिका भी हैं. इन्हें जैसलमेर राजघराने  का राजकुमारी रत्नावती सम्मान,   राजघराने  का वीर दुर्गादास राठौड़ सम्मान और भारतेंदु समिति कोटा का साहित्य श्री सम्मान प्राप्त है.

इमेल – asha09.pandey@gmail.com

फोन नंबर:-  07597199995,  8852995867

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *