विशिष्ट ग़ज़लकार :: मधुवेश

मधुवेश जी की 230 शेरों की लंबी ग़ज़ल का कुछ अंश

 

ग़ज़ल : बहुत पहले

न मोटर थी न बाइक थी न रिक्शा था बहुत पहले
सफ़र पैदल किया है हमने मीलों का बहुत पहले

उसी का तो नतीजा है मेरी आँखें सलामत हैं
मुझे काजल लगाती थी बड़ी अम्मा बहुत पहले

जहाँ से मैं गगन के चाँद-तारे देख सकता था
वो आँगन था मेरे घर में मगर वो था बहुत पहले

जो देखी मोर की तस्वीर मैंने याद हो आया
बुआ के हाथ का काढ़ा हुआ तकिया बहुत पहले

शहर तक आते-आते सूख जाता है हरा धनिया
हमारे गाँव में कैसा महकता था बहुत पहले

तरक्की की हवस ने हाय क्या सूरत बना डाली
नहीं तो ये शहर क्या खूब था कस्बा बहुत पहले

हमें समझा रहे हैं लोग खादी का महादर्शन
कबाड़ी को जिन्होंने दे दिया चर्खा बहुत पहले

शरण माँगी थी सीता ने दुखी होकर जो अपनों से
कलेजा फट पड़ा था धरती माता का बहुत पहले

बताने को समय तब गाँव में थीं ही कहाँ घड़ियाँ
बताता था समय दीवार का साया बहुत पहले

ये बूढ़ा आदमी जो तरबतर है तेज़ बारिश में
ये टूटी छतरियों को ठीक करता था बहुत पहले

सभी की चिट्ठियाँ पढ़ना मेरा ही काम होता था
मुहल्ले-भर में था मैं ही पढ़ा-लिक्खा बहुत पहले

तुम्हारी बेद-बानी आज भी सुनने नहीं देता
हमारे कान में डाला गया सीसा बहुत पहले

जवानी बूढ़े बरगद की उन्होंने भी कहाँ देखी
हमारे बाप-दादा का ये कहना था बहुत पहले

चचा रमज़ान उस दौरान तुम कितने बरस के थे
हुआ था जुल्म से आज़ाद जब ढाका बहुत पहले

अरे क्या नाम था उसका,हमारे साथ पढ़ता था
चलाता था जो अक्सर रात में रिक्शा बहुत पहले

जो मट्ठा हींग-सरसों तेल से धुंगार देती माँ
न पूछो किस क़दर स्वादिष्ट होता था बहुत पहले

हमारा काम चल जाता था खड़िया और पट्टी से
कहाँ होता था भारी इस क़दर बस्ता बहुत पहले

जो देखे वीडियो में मोर मुझको याद हो आया
जो मेरे गाँव में था बाग़ आमों का बहुत पहले

उसी की छाँव में आकर खड़ा होना पड़ा मुझको
कहा जिस पेड़ को मैंने कभी बौना बहुत पहले

अभी जब पन्नियों का दौर है तो याद आता है
निकलना पैंठ को लेकर कोई झोला बहुत पहले

हमें तो याद है लेकिन तुम्हें भी याद तो होगा
कि किसने किसको पिंजरे का कहा तोता बहुत पहले

सताता है उन्हें इक शख़्स के जाने का ग़म अब तक
विचारों की जो उसके कर चुके हत्या बहुत पहले

सुना है आज के धृतराष्ट्र तो सुन भी नहीं सकते
भई,वो सुन तो सकता था जो अंधा था बहुत पहले

हटा दी है जो धारा तीन सौ सत्तर बताओ तुम
नहीं उसको हटाना चाहिए था क्या बहुत पहले

हमारी ज़िद पे अब्बू ने दिया था रेडियो लाकर
बरेली में गिरा था जब कोई झुमका बहुत पहले

…………………………………………………………………..

परिचय : मधुवेश की कई ग‍़ज़लें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. ये यमुना बिहार, दिल्ली में रहते हैँ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post ब्रज श्रीवास्तव की पांच कविताएं
Next post ‘तस्वीर कहीं तो है’ में रिश्तों का आपसी सामंजस्य :: डॉ भावना