विशिष्ट ग़ज़लकार :: सुनील शर्मा

डॉ सुनील कुमार शर्मा की ग्यारह ग़ज़लें

 

मुझे पहले यूँ लगता था सहारा चाहिए मुझको

मुझे पहले यूँ लगता था सहारा चाहिए मुझको

मगर अब जा के समझा हूँ किनारा चाहिए मुझको

 

तुम्हारे साथ गुज़रे पल भला कब भूल पाया हूँ

वही बीता हर इक लम्हा दुबारा चाहिए मुझको

 

तुम्हारी झील सी आँखों में ख़ुद को डूब कर देखूँ

रहे नज़रों में हरदम वो नज़ारा चाहिए मुझको

 

मिला है सब ज़माने में फक़त अब एक अरमां है

हमेशा साथ हर पल अब तुम्हारा चाहिए मुझको

 

अगर दुनिया से लड़ना भी पड़े तो मैं अकेला ही

लड़ूँगा बस तुम्हारा इक इशारा चाहिए मुझको

 

जो मेरा चाँद है उसको सजाने के लिए हर दिन

चमकता आसमां का हर सितारा चाहिए मुझको

 

हुआ ज़ाया बड़ा ही वक़्त इस मेरे-तुम्हारे में

कि ‘शर्मा’ आज से सब कुछ हमारा चाहिए मुझको

 

उसकी हस्ती मेरी हस्ती एक नहीं

उसकी हस्ती मेरी हस्ती एक नहीं

अलग-अलग है अपनी कश्ती एक नहीं

 

अगर मुहब्बत दुनियादारी से तोलो

हो जाएगी महँगी-सस्ती एक नहीं

 

फ़र्क बड़ा होता है शौक़े ज़रूरत में

उसकी मस्ती मेरी मस्ती एक नहीं

 

ग़ौर से देखोगे तो फ़र्क दिखेगा ये

इश्क़ मुहब्बत हुस्न परस्ती एक नहीं

 

यहीं तलक था साथ हमारा ये मानो

उसकी बस्ती मेरी बस्ती एक नहीं

 

दाँव पर तो लग चुकी थी ज़िन्दगी दोनों तरफ

दाँव पर तो लग चुकी थी ज़िन्दगी दोनों तरफ

बढ़ रही थी इश्क़ कि भी तिश्नगी दोनों तरफ

 

फिर कहाँ था होश भी दो जाँ मिले कुछ इस तरह

रफ़्ता- रफ़्ता छा रही थी बेख़ुदी दोनों तरफ

 

तीरगी में रौशनी थी रौशनी में तीरगी

हो रही थी कुछ न कुछ जादूगरी दोनों तरफ

 

क्या गज़ब की भूल बैठे लफ्ज़ भी अपना पता

थी अगर कुछ तो फ़क़त थी ख़ामुशी दोनों तरफ

 

अश्क आँखों में लिए दिल कह रहे थे अलविदा

हो रही थी बात आख़िर आख़िरी दोनों तरफ

 

कौन अदा करता है क़ीमत फूलों की मुस्कानों की

कौन अदा करता है क़ीमत फूलों की मुस्कानों की

कोई क़द्र नहीं दिखती जब दुनिया में ईमानों की

 

रुख़सारों पे रूठे बैठे हैं वो काले तिल देखो

आस नहीं दिखती आँखों में उन अल्लहड़ अरमानों की

 

ख़ुद के भीतर ही अंधियारा है जब बाहर क्या देखें

ग़ज़लों ने पूछा कब बातें होंगी अब इन्सानों की

 

आज मशीनी हैवानों से कैसे निपटें मुश्किल है

क़ीमत क्या उनकी आँखों में बद हालत नादानों की

 

सच को झूठ बना देते हैं कुछ लोगों की फ़ितरत है

कौन करेगा रहबर बातें आज तेरे एहसानों की

 

दीवानों की बस्ती में मत हाल किसी का पूछो तुम

दीवारों पर मिल जाएँगी तहरीरें अफ़्सानों की

 

मिल तो लेते हैं पर सुख दुःख कैसे अपना बतलाएँ

महफ़िल तो अपनों की है पर बातें हैं बेगानों की

 

मर्ज़ ऐसा जो ख़ुद अपने ही दरमानों से हार गया

मर्ज़ ऐसा जो ख़ुद अपने ही दरमानों से हार गया

मुझको देखो जो अपने ही अरमानों से हार गया

 

क़िस्सों की मानें तो क़िस्सों ने बहुतों को लूटा है

इक क़िस्से में इक क़िस्सा भी एहसानों से हार गया

 

दिल की सीधी सच्ची बातों पे चल पाया ज़ोर कहाँ

ख़ुद को दानिशवर जो कहता नादानों से हार गया

 

उसके ही तो आशिक़ थे ये धरती बारिश आग हवा

पर वो भी तो तेरे ही इन दीवानों से हार गया

 

तुझको पाकर भी ना पाने का तो होगा रंज मुझे

फिर भी जाने क्यों मैं तेरे फ़रमानों से हार गया

 

दुनिया वालों के आगे था झुकना नामंज़ूर मुझे

मैं अपने ही भीतर उठते तूफानों से हार गया

 

गैरों की साज़िश का पैमाना उसको मालूम था पर

वो अपनों की साज़िश के ही पैमानों से हार गया

 

इक दफ़ा आवाज़ देते तुम मुझे मैं दूर था क्या

इक दफ़ा आवाज़ देते तुम मुझे मैं दूर था क्या

जो किया तुमने वो बोलो प्यार का दस्तूर था क्या

 

ख़त तो मैंने पढ़ लिया था दिल को कब समझा सका ये

तुम भले मजबूर थे पर प्यार भी मजबूर था क्या

 

सच! तुम्हारी उस गली में ज़िक्र  मेरा आज भी है

प्यार का क़िस्सा हमारा इस क़दर मशहूर था क्या

 

चाँदनी सी रोशनी तुम आए थे तब हो गई थी

चाँद तो बादल में था फिर वो तुम्हारा नूर था क्या

 

जब अकेला बैठता हूँ बस यही मैं सोचता हूँ

फ़ैसला ‘शर्मा’ की क़िस्मत को यही मंज़ूर था क्या

 

बिन पैरों के चलता डाटा

बिन पैरों के चलता डाटा

ज़ह्नों में अब पलता डाटा

 

इंसानों को क्या बोलें अब

सच में झूठ बदलता डाटा

 

खो जाते इसके सागर में

कुछ ऐसे है छलता डाटा

 

कब्ज़ा सब कुछ पर कर लेगा

जीवन में ये ढलता डाटा

 

तोहफ़े तो पहले मिलते थे

अब तो सबसे मिलता डाटा

 

मर जाने पर तस्वीरों पे फूल चढ़ाने लगते हैं

 

मर जाने पर तस्वीरों पे फूल चढ़ाने लगते हैं

लोग जमा हो कर यादों में शम्अ जलाने लगते हैं

 

जीते जी कब मिलती फ़ुर्सत जो लेते ना हाल कभी

इक दिन फिर वो ही मिट्टी पर अश्क बहाने लगते हैं

 

अपने भी ग़ैरों से होते जब तक खाली हाथ रहे

कुछ पाते ही सब रिश्तों के रस्म निभाने लगते हैं

 

सोता हूँ तो कोशिश करता हूँ उसको ना सोचूँ मैं

शब भर उसके ही सपनें बस मुझको आने लगते हैं

 

दुनिया भर कि चीज़ें पा कर भी नाख़ुश हैं लोग बड़े

एक खिलौना पा कर भी बच्चे मुस्काने लगते हैं

 

ऐसे भी कुछ दोस्त मिले हैं जो इक मौका मिलते ही

भूले बिसरे ज़ख्मों के एहसास दिलाने लगते हैं

 

वीराने में भी उन राहों पर डरने की बात नहीं

‘शर्मा’ जो रस्ते हमको जाने पहचाने लगते हैं

 

बस इंतज़ार किया वक़्त के गुज़रने का

बस इंतज़ार किया वक़्त के गुज़रने का

तमाशा देख लिया डूब के उभरने का

 

बड़ा अजीब है दुनिया में रंगे उल्फ़त ये

चढ़े तो नाम न ले फिर कभी उतरने का

 

यहाँ दुकां भी मोहब्बत की खुल रही अब तो

मकाम ये तो नहीं है मेरे ठहरने का

 

गिला भी क्या करें उससे भला कभी सोचो

मिला हो वक़्त नहीं जिसको तो निखरने का

 

फ़ना भी क्या करें तन्हाइयाँ उसे जिसको

ज़रा भी ख़ौफ़ नहीं टूट के बिखरने का

 

हो न गर मेहंदी मेरे हाथों में तेरे नाम की

हो न गर मेहंदी मेरे हाथों में तेरे नाम की

ज़िंदगी ऐसी हो फिर ये ज़िंदगी किस काम की

 

फ़ैसला जब कर चुके दिल सौंपने का हम तुम्हें

सोचते आगाज़ की या इश्क़ के अंजाम की

 

हम सही अपनी जगह थे तुम सही अपनी जगह

हो ना हो गलती रही होगी कहीं उस शाम की

 

जुर्म साबित हो ना पाया आज तक मेरा मगर

मिल रही हमको सज़ा और वो भी बस इल्ज़ाम की

 

भूल पाया है भला कुछ भी अभी तक दिल कहाँ

और बाक़ी है अभी तक ख़्वाहिशें पैग़ाम की

 

जब से हमारे बीच में रिश्ता नहीं रहा

जब से हमारे बीच में रिश्ता नहीं रहा

तबसे ग़मों में मैं भी जियादा नहीं रहा

 

जिस पेड़ ने गुरूर दिखाया था छांव का

एक रोज़ उसपे एक भी पत्ता नहीं रहा

 

मोड़ा है मुश्किलों को पसीने की आग से

क़िस्मत को कोस-कोस के रोता नहीं रहा

 

तोड़े हैं बूढ़े हाथ ने पर्वत भी इश्क़ में

किसकी ज़ुबान पर तो ये किस्सा नहीं रहा

 

जिसने जुटाई झूठ से दौलत तमाम उम्र

ख़ैरात बाँटते ही वो झूठा नहीं रहा

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परिचय :  डॉ सुनील कुमार शर्मा चर्चित गजलकार हैँ. इन्हें भाररतीय रेलवे में उत्करष्ट्ट योगदान के  रेल मंत्रालय, द्वारा 2013 में राष्ट्रीय पुरस्कार  सहित अन्य पुरस्कार से नवाजा गया है. इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित है.

संप्रत्ति – निदेशक (उत्पादन)  ब्रेथवेट एंड कं पनी लललमटेड (रेल मंत्रालय), कोलकाता एवं कायाकारी निदेशक (क्वाललटी एश्योरेंस) अनुसंधान डडजाइन और मानक संगठन, कोलकाता

ईमेल: sunilakshrmakol@gmail.com मोबाइल: +91890206005

 

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