अब इन्तज़ार के मौसम उदास करते नहीं,
अजीब है कि हमें ग़म उदास करते नहीं।
कभी-कभी का ख़फ़ा होना ठीक है लेकिन,
किसी के दिल को यूँ पैहम उदास करते नहीं।
उदास होने का हमको सलीक़ा आता है,
उदासियों को कभी हम उदास करते नहीं।
ये दिल तो कहता है अब आज़माएँ ख़ुशियों को,
बहुत दिनों से ये मातम उदास करते नहीं।
किया था तुमसे जो वादा निभा रहे हैं हम,
तुम्हारी जान को जानम उदास करते नहीं।
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परिचय : रिजवान इकरा लगातार गजलें लिख रही हैं. इनकी कई गजलें पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.
सलीके की गजल है, खूब कही गयी 👌
*भोपाल से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका अक्षरा का जुलाई 2021 अंक-*
https://katha-chakra.blogspot.com/2021/07/2021_15.html?m=1
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