दोहे – जयप्रकाश मिश्र

दोहे
– जयप्रकाश मिश्र

बच्चें भी पढ़ने लगे, तीर धनुष तलवार ।
दिल मेरा जलता रहा, देख हजारों बार।।

उजड़ी बस्ती कह रही, जख्म भरा इतिहास।
मत खेलो इंसान से, पशु करते परिहास।।

नफरत बो कर चल दिया,एक अजब इंसान।
गली गली खामोश है, सकते में है जान।।

सम्बन्धों पर गिर रही, अब रोज रोज गाज।
अगड़े पिछड़े दलित में, जब से बटा समाज ।।

बिछिया पायल घूंघरू,खनक रहे है पाँव।
मदभरे नयन सोचते, कैसे जीते दाँव ।।

ऐसी भींगी देह भी, रह रह आती लाज।
आँख हृदय से मांगती, सुन्दर सपना आज ।।

नयनों से कह रही वह, बहकी बहकी बात।
नींद जाने कहाँ गयी, भींगी भींगी रात।।

तन मन अकुलाने लगे, निभे न कोई फर्ज ।
ताकझांक ऐसी बढ़ी, बढ़ा प्रेम का कर्ज ।।

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परिचय : कविता, दोहे व समीक्षाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
मिश्रा टोला, शिवहर

 

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