अंगिका दोहा
- दिनेश बाबा
बाबा खल के दोसती, दुक्खे दै के जाय।
बदमाशी आँखें करै,देह कुटम्मस खाय।।
प्रेम आरु गाढ़ो हुवै,बाढ़ै जब बिलगाव।
भाँसै तेजी सेँ तभी,तट छोड़ै जब नाव।।
बाबा एन्हैं चलै छै, स्वारथ के संसार।
गाय दुधारू सब रखै, तजै वृद्ध बेमार।।
सत्य उघारो देह छै, ओढ़ै झूठ रजाय।
भला लोग के तोहमत, दुष्ट प्रशंसा पाय।।
लुकमा एक अमीर के,सौ गरीब के कौर।
बुनियादी हय फरक के,कहिया मिटतै दौर।।
मंत्रीपद बाबा लगै,जना एक टकसाल।
मनमाफिक लोगें जहाँ, खूब हँसोतै माल।।
राजनीति में छै यहाँ, सबकुछ छले प्रपंच।
जै में छै गरियाय के, बाबा खुल्ला मंच।।
दुष्ट न छोड़ै दुष्टता ,कत्तो करो उपाय।
मरलो पर मूँ साँप रो,बाबा चुरलो जाय।।
दू टाका के नौकरी, दस्तूरी में चार।
यही चलन सें देश में, बढलै भ्रष्टाचार।।
बाबा लड़ियै झगड़ियै,करियै वाद विवाद।
जारी मतर कि राखियै,आपस में संवाद।।
भाषा रोटी भात रं ,भाषा भूख पियास।
लहुवो दै के अंगिका,रो लिखबै इतिहास।।
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परिचय : दिनेश ‘बाबा’ (दिनेश ‘तपन’), भागलपुर