ख़ास कलम :: सुमन आशीष
सुमन आशीष की तीन ग़ज़लें
1
तितलियाँ, तोते,गिलहरी यार थे
बचपने के ये मेरे संसार थे
आम बरगद नीम से थी दोस्ती
चाँद-सूरज ख़ास रिश्तेदार थे
घर बनाते थे नदी की रेत पर
दो घड़ी मेंं स्वप्न सब साकार थे
पास की नदियाँ समंदर हो गईं
तब के मौसम कितने पानीदार थे
उस ग़रीबी में भी इक संतोष था
घर से कितनी दूर तब बाज़ार थे
अब तो डरते हैं बड़ों को देखकर
कल बड़े होने को हम तैयार थे
नौकरी है या गुलामी क्या कहूँ
वे ज़माने थे कि ख़ुद मुख़्तार थे
2
कम हो जाए क़द अपना
क्यों चाहूँ वो पद अपना
बौने क्यों इस ज़िद पे हैं
कर लें आदमकद अपना
ख़ुद जी लूँ जीने भी दूँ
इतना ही मक़सद अपना
मन भर के खर्चे करने
पहले भर लूँ मद अपना
तोता, मैना, कोयल का
घर सुंदर बरगद अपना
रेतीले टीलों पर है
सदियों से गुम्बद अपना
सुनती है दिन-रात “सुमन”
भीतर का अनहद अपना
3
वो पानी से नहीं अपने पसीने से नहाती है
मगर फिर भी ग़रीबी ख़ून के आँसू बहाती है
सभी इक -दूसरे के ख़ून के प्यासे हुए जाते
सियासत इस तरह से क़ौम को पागल बनाती है
अमीरों की नज़ाकत धूप में दम तोड़ने वाली
ग़रीबी पाँव नंगे ही सड़क पर दौड़ जाती है
यहाँ पर गाँव में बरगद खड़ा है आस में जिसकी
शहर में वो जवानी रात-दिन ख़ुद को खपाती है
उगाए जा रहें हैं कंकरीटों के घने जंगल
मगर इनसे कटे पेड़ो की अक्सर चीख आती है
समय रहते दबी चिन्गारियों की भी ख़बर रखना
वगरना एक चिन्गारी समूचा घर जलाती है
बगावत पर उतर आए उसे अच्छा नहीं लगता
हवाओं को कहाँ मज़दूर की पगड़ी सुहाती है
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परिचय : सुमन आशीष की कई ग़ज़लें प्रकाशित हो चुकी हैँ. एक कविता की पुस्तक भी प्रकाशित है.
पता–128,रूपनगर,सेक्टर -तीन,हिरणमगरी,उदयपुर(राजस्थान)
पिन कोड–313002