विशिष्ट कवि : ब्रज श्रीवास्तव

अणु

एक अणु ने

ओढ़ लिया है ज़हर

वह अपनी काली शक्ति से

मार डालना चाह रहा है

बचपन

वह उम्र को निगलने के लिए

निकल पड़ा है

 

खबरों की दौड़ में

वह सबसे बड़ी खबर

बनते हुए

नहीं संकोच कर रहा

हत्यारा बन जाने में

 

क्या

किसी मानव से ही

सीख लिया है उसने

अमानवीय हो जाना.

 

विषाणु

एक विषाणु

हमारी मुस्कराहट के फूल पर

बैठ गया है

 

एक विषाणु हमारे

पैरों के तलवे में

कांटां बनकर घुस गया है

एक विषाणु

बैठ गया है

हमारे कानों के पर्दे में

 

एक विषाणु

हमारी वाणी में

घुल गया है

एक विषाणु

हमारी प्रतिबद्धताओं में

और चरित्र में भी

 

यह देश की दीवारें

लांघकर व्याप रहा है

चहुंओर

बन रहा है

महासूचना

 

यह  विषाणु

घूम रहा  है हवा में समाकर

घर के

द्वार खुलते ही

वे  एक एक की सोच में

जाकर बैठ जाएगा,

और

एकदम

बदल जाएंगे लोग

बोलने लगेगें झूठ

चीखने लगेगें

या झगड़ने लगेगें

 

मनुष्य की हस्ती

कब से सुन रहे थे हम

शैतान के बारे में

 

अब जाकर देखी उस की साजिश

जो भरसक कोशश कर रहा है

लाशें बिछाने की

लेकिन कब नेस्तनाबूत हुई है

मनुष्य की हस्ती

हरा  ही देगा वह

वायरस को

 

बचा  ही लेगा धरती को

उसकी उर्वरता के संग.

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परिचय : ब्रज श्रीवास्तव निरंतर लेखन में सक्रिय हैं.

फिलहाल साहित्य की विभिन्न विधाओं में काम कर रहे हैं.

 

 

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