
विशिष्ट कवि :: भरत प्रसाद
भरत प्रसाद की पांच कविताएं
पिता को मुखाग्नि
वह सबसे दुश्मन रात थी
जब विदा हुए पिता जीवन से
बिछी छाया की तरह पड़ा हुआ शरीर
पुकार रहा था, हर किसी की नियति
सबसे चोटदार था माई का रोना
जैसा पहले कभी नहीं रोई।
अर्थी क्या उठी
उठ गया उंचाईयों भरा आसमान
जो त्याग बनकर बरसता रहा।
बैरी मरजाद ने जकड़ लिए माई के पैर
घाट पर रोने से,
घरीघंट पर पड़ती चोट,घाव बनकर
आत्मा में अमिट है
आह जैसी नस-नस में गूंजती हुई।
उस दिन पृथ्वी ने छोड़ दिया था
पैरों का साथ,
दिशाएं गायब थीं,निगाहों से
भरे दिन घुप्प अंधेरा भर गया।
माई भी पूरी मां कहाँ रह गयी?
पति को खोकर।
बीतते शरीर के साथ
सांसों का हिस्सा बन गया
पिता खोने का अभाव।
जीवन-मृत्यु के अंतहीन युद्ध में
न होना जीत गया होने पर,
चिता की आग ने चेतावनी दी
जो आज भी चौंक भरती है
यूं ही जीते चले जाने पर।
मुखाग्नि देते ही
अनुभूतियों में निराकार हो गया…
गलतियाँ तीसरी आंख है
अचूक दवा जैसी होती हैं-गलतियां
जिद्दी रोग मिटाने के लिए
अदृश्य नश्तर जैसी भी।
अनमोल सबक की शक्ल में
दादी जैसी
अंदर-अंदर
नेह-सिखावन भरती हुई।
गलतियां हमें सही करने में
तनिक भी गलती नहीं करतीं।
अधूरा है,खोखला है,वह हर सही
जो नहीं तपा,नहीं गला
नहीं लड़खड़ाया, नहीं गिरा
मात कभी खाया ही नहीं
जो भर तबियत नहीं रोया
अनगढ़ गलतियों की जमीन पर।
गलतियाँ धो,पोंछ डालती हैं
गलती करने के सारे भय
धंसा देती हैं पैर
साहस के अतल में
अदम्य आत्मविश्वास का तानाबाना
गलतियों से बुना होता है
बिना गलती किए
खुद को पक्की निगाह से परखने की
तीसरी आंख होती हैं गलतियां।।
चुप्पियों का गणित
मायावी निगाहें खोजती फिरती हैं मासूमियत
पंजों को लग चुकी है प्यास मुलायम जिस्म की
मौत का खेल खेलने में
जानवर से है क ई गुना जानवर
जिसकी जादुई परछाईं से खून की दुर्गंध उड़ती है
वह जहाँ भी पड़ती है-घाव हो जाता है।
मौन रहना उसका मंत्र है-अचूक शिकार का
सज्जनता दरवाजा है-भुतहा अंधकार का
होंठों की धारदार खुशी-गवाह है
जिस्म के लिए जिस्म में मची हुई आग की।
जिसके शब्दों के पीछे विकृत कल्पना का ज्वार
कदमों के तेवर में जमींदोज़ करने की कला
सांस -दर-सांस पर अंधी ख्वाहिश का राज
जिस पर विश्वास – खुद को मिटा देने की नादानी है।
जिसके खिलाफ हमारी चुप्पी
हमें नपुंसक सिद्ध करने के लिए काफी है
जिसका अट्ठहास सह लेना
घोषित करता है हमारा भी अपराध
जिसका बेखौफ़ अंदाज़ साबित कर देता है
पृथ्वी आज भी किससे मात खाती है?
फवाद अंदराबी
(अफगानिस्तान का लोकगायक,जिसकी तालिबानियों ने हत्या कर दी थी)
गोली पहले कहाँ धंसी?
फवाद अंदराबी के सिर में
या आत्मा से झरते उसके संगीत में?
हत्या किसकी हुई?
जर्रे,जर्रे में प्राण भरते संगीतकार की
या अलख की आग सुलगाती हुई
जीवित मशाल की?
फवाद अंदराबी क्या मरा
विदा हो गया घाटियों से
अमन का राग छेड़ता हुआ पक्षी
अफगानिस्तान ने खो ही दी
वतन के लिए दर-दर नाचने वाली पुकार
जब कलाकार मरता है,तब एक रोवाँ टूटता है
धरती के शरीर का,आत्मा में धंसा हुआ
एक दीया कम पड़ जाता है
मनुष्यता की विजययात्रा में
एक सर्जक की हत्या
सुबह को फिर असंभव कर देती है
समर्पण में तना हुआ फवाद का शरीर
बेजुबान रहकर मर जाने के लिए नहीं
पुकार के जादू से जगा जाने के लिए
रात-दिन बजता था,
गला काटा जा सकता है-नफरत की धार से
उठी हुई आवाज़ को काट पाना असंभ…
औरत का शरीर पाना!
भूख अंतहीन युद्ध है
जब अन्न की कल्पना करते-करते
अंतड़ियां हाहाकार करने लगें।
वह है, आखिरी ख्वाब
जब सारे अरमान मिट गये हों
पेट की मायावी आग में।
भूख-आदत बन चुकी अबूझ बीमारी है
यदि वह रोज-रोज की चुनौती बन जाय
मौत की आंखों से आंखें लड़ाता अचरज है
भूख के मोर्चे पर लड़ता हुआ आदमी।
बेटी बेचने का धिक्कार ज्यादा कचोटता है
या अंग अंग को मुर्दा बनाती भूख?
मां होने की लाज रखना ज्यादा आसान है
या संतान बचाने के लिए
संतान का सौदा कर देना?
वह कौन सी बेवसी है, औरत की
जो अपनी कोख को दांव पर लगा देती है?
मां कहलाने का हक छिन जाने के बावजूद।
इतना आसान कहाँ है, ममता की थाह ले पाना
इतना सरल कहाँ है,माईपन में निमग्न
औरत की हूक सुन पाना।
बिकी हुई औलाद के लिए
मांएं पहेलियां बन जाती हैं
मां के हाथों बिक जाने के बाद
हर बार मर जाती हैं, लड़कियां
जीते जी…
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परिचय : भरत प्रसाद की कविता, आलोचना और कहानी विधा में 16 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैँ. इन्हें मलखानसिंह सिसौदिया कविता पुरस्कार भी मिल चुके हैं.
सम्प्रति – प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग-793022(मेघालय)
मेल-deshdhar@gmail.com
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