लघुकथा : तारकेश्वरी तरु ‘सुधि ‘

प्रेम

जैसे ही फोन उठाया वो बोली मेरे जीवन में आपने रंग भरे हैं । मैं कर्जदार हूँ आपकी । अपने घर आ गई हूँ । आपको हर पल याद किया।शादी के बाद पहला फोन आपको किया । सुनकर किरण ने चैन भरी सांस ली ।किसी कारण से शादी में नही जा पाई थी ।
दूसरी मुलाकात में जब किरण ने उसके कन्धे पर सान्त्वना के लिए हाथ रखा तो फफक- फफक कर रो पड़ी थी। वही एक पल था जिसमे किरण ने उसे दोस्त मान लिया था ॥
उसके पति की मौत के बाद हर किसी के लिए सर्व सुलभ वस्तु हो गई थी जैसे ।ससुराल वालों ने जीना दुश्वार कर दिया था ।माँ-बाप की कुछ दिन पहले मौत हो चुकी थी । भाई -भाभी को उसके कष्टों से ज्यादा समाज की परवाह थी ।
अचानक एक दिन वो बोली, नौकरी करनी है मुझे । किरण ने आनन-फानन अपने कार्यालय में नौकरी दिलवा दी ।
एक दिन परेशान शीला को देख कर किरण ने पूछा तो बोली—
“विमल सर बिना बात परेशान करते है ।छोटे -छोटे काम में जबरन गलतियाँ निकालना रोज का काम है ।घर- बाहर सबने इतना परेशान कर दिया कि आत्महत्या करने को मन करता है ।
ये मत सोचना कि वो अकेली है सर । आपके चेहरे का नक्शा बदलते देर नही लगेगी ।उस तक पहुँचने से पहले ये बात ध्यान में रखना ”। किरण ने कहा तो डर गया था वह ।
शीला को आने वाली प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में लगाकर उसने अपने जान पहचान वाले लोगों से कहकर दूसरी शादी के लिए लड़का तलाश लिया बहुत मुश्किल से किरण उसे तैयार कर पाई ।परीक्षा ,फिर परिणाम आना ।सरकारी नौकरी मिल जाना ,दूसरी शादी,सब किरण स्वयं करती गई ।
बोली , मैं हर मुश्किल वक्त में साथ खड़ी मिलूंगी ।
शादी का सारा खर्च लड़के ने किया था ।बहुत अच्छा पति मिला था । किरण के मन को सुकून था दोस्त का जीवन संवारने के बाद ।

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