रश्मि तरीका

Read Time:28 Second
छींटे वाली चाय
"लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है ..गीत के साथ गुनगुनाते हुए सुनील ने बड़े रोमांटिक अंदाज़ में पत्नी को बाहों के घेरे में लिया.
" यार , कभी तो ऐसा किया करो कि सुबह सुबह नहा कर ,साड़ी पहनकर गीले बालों से मेरे चेहरे पर छींटे डालते हुए मुझे चाय के लिए उठाओ."
"अब ये चौंचलें अच्छे लगते हैं क्या ? बच्चे बड़े हो रहे हैं."
"वही तो कह रहा हूँ ..बच्चे बड़े हो गए हैं और वो सुबह देर से जागते हैं।तब तक तुम आराम से ये छींटे वाली चाय पिला सकती हो अगर नीयत हो तो ..!"
सुनील की इन मीठी बातों को याद करते हुए शिखा ने सो रहे पति की तरफ देखा. कैंसर का सही समय से पता चलने पर सुनील का इलाज तो हो गया लेकिन उसे कमज़ोर काफी कर दिया था. खुद शिखा पति की सेवा करते हुए अपनी सुध बुध खो चुकी थी लेकिन एक इत्मीनान था उसके लौट आने पर.
"अरे ..ये पानी कहाँ से ...?" चेहरे पर अचानक पानी की बूंदे पड़ने से नींद खुलने से सुनील ने चौंक कर कहा. फिर शिखा की तरफ देखा जो गीले बालों में ,साड़ी पहन चाय का कप लिए खड़ी थी.
"यह लीजिये ,अपनी छींटे वाली चाय !"मुस्कुरा कर चाय थमाते हुए शिखा ने कहा.
"इतने अरसे बाद आज याद आई है तुम्हें !और कहीं मुझे कुछ हो जाता तो मैं यह ख्वाईश लिए ही चला जाता .!"सुनील ने जैसे ही कहा शिखा ने उसके होठों पर अपना हाथ रख दिया.
"ऐसा मत कहो प्लीज..! मेरे सारे सावन तुम्हीं से हैं सुनील ! बस मैंने ही खुद को उम्र के दायरों में बाँध दिया था."
बाहर हो रही बरसात और दो दिलों की मुहब्बत ने आज फिर से सावन की झड़ी लगा दी थी और दोनों इस में भीग रहे थे.
चुनाव
"क्या हुआ लाडो ..मेरी बच्ची ? रो क्यूँ रही हो ?" घुटनों में चेहरा छुपाये बेटी की सिसकी सुन प्रमिला घबरा गई.
"क.. कुछ नहीं माँ ! बस ऐसे ही।"सौम्या ने अपनी माँ को देख आँसूं पोंछते हुए कहा.
"दामाद जी से कोई कहा सुनी हुई क्या ? सच सच बताओ बेटा."
"मैं संभाल लूँगी माँ ,आप चिंता मत करो. अच्छा चलो मैं आपके लिए चाय बना कर लाती हूँ." बात टालते हुए सौम्या उठने लगी.
"नहीं वो सब बाद में ! तुम्हें मेरी सौगन्ध है सुमु बता पहले क्या हुआ ? देख रही हूँ , जब से यहाँ आई है खोई खोई सी रहती है."
" माँ आप न ये कसमें मत दिया करो. अगर बता भी दूँगी माँ तो आप तो यही कहोगे न कि प्रेम विवाह में अक्सर दुख ही मिलते हैं, तो अब भुगतो"कहते कहते स्वर भीग गया सौम्या का.
"पगली हो ! कोई माँ बाप ऐसे कहते हैं क्या ?"
"माँ, अनिकेत के चचेरे भाई की बदनियती से बचाव करते हुए मैंने उसपर हाथ उठा दिया लेकिन इस बात से घर में कोहराम सा मच गया है और जिस अनिकेत पर मैंने भरोसा किया वही मेरा साथ देने की बजाए मुझ पर माफी मांगने के लिए दबाव डाल रहा है. माँ ,मैं जानती हूँ कि चुनाव मेरा था तो समस्याएँ भी मेरी ही होंगी पर आप ही बताइए मैंने क्या गलत किया ?" कहकर फुट फूटकर रोने लगी सौम्या.
"बेशक चुनाव तुम्हारा था लाडो, लेकिन जब हमने तुम्हारी खुशी में साथ दिया था तो आज तकलीफ़ में भी तुम्हारा साथ देंगे न ! तुम्हें विदा किया है ,त्याग नहीं दिया, लाडो."
"बस आप मेरे साथ हो न माँ, तो मेरा भी वादा है कि मैं कभी अपनी वजह से आपका सर झुकने नहीं दूँगी !"
"हाँ ,लेकिन एक बात मेरी भी याद रखना ! ज़िन्दगी में रिश्तों में ज़रूर झुकना लेकिन अन्याय के समक्ष कभी मत झुकना." बेटी के सर पर स्नेहयुक्त हाथ फेरते हुए प्रमिला ने उसे गले लगा लिया.
रुतबा
"निशा बहू, आज तुम्हें एक ज़िम्मेदारी सौंपना चाहती हूँ. मना तो नहीं करोगी न?" अपनी बड़ी बहू के सर पर हाथ फेरते हुए सरिता ने कहा.
"नहीं नहीं ...माँजी ,कहिये न !"
"देखो बहू ,तुम्हारी देवरानी मीता को आये लगभग चार महीने हो गए अब तो. मुझे भी गाँव लौटना है सो अब उसके वार त्यौहारों पर मैं तो, आ नहीं पाऊँगी. मेरी इच्छा है कि अब तुम जेठानी के साथ उसकी सास बनकर भी अपने कर्तव्यों का पालन करो. इसलिए इस बार मीता के यहाँ से करवाचौथ का सास का नेग तुम्हें देती हूँ. "सरिता ने एक उम्मीद भरी नज़र से बहू को करवाचौथ का सामान पकड़ाते हुए कहा.
"माफ़ कीजिएगा माँजी, मैं यह सब नहीं कर पाऊँगी." हाथ जोड़ दिए निशा ने सास के आगे.
"भगवान किस्मत वालों को ही देता है ,ऐसा रुतबा और सम्मान ! एक तुम हो कि मना कर रही हो." ताना मारते हुए सरिता ने कहा.
"माँजी ,ये रुतबा ,मान तो मुझे देवर जी ने भी दिया था अपनी बहन बनाकर लेकिन मीता ने इसे दिखावा कहकर नकार दिया. भगवान की दया से जो रिश्ता है हमारा वही निभ जाए , काफी है." दरवाज़े के पास खड़ी देवरानी की ओर देखते हुए निशा ने कहा.
सबूत..
"जी सर ...जी सर.. आप चिंता मत कीजिये सर. समझ गया जी...."
सब इंस्पेक्टर ने फ़ोन रखते ही सबको पोजीशन लेने का इशारा करते हुए कहा ,"कॉन्स्टेबल लता और उमा , महिला संगठन की कुछ औरतें आने वाली हैं. तुमने उन औरतों को अंदर जाने से रोकना है."
"कांस्टेबल यशपाल और विजय तुम दोनों मीडिया वालों पर नज़र रखना. "
"एक हफ्ते से यहाँ मक्खियाँ मारते मारते थक गए थे. चलो आज कुछ हलचल तो हुई. पर ये अचानक महिला संगठन वाले आज कहाँ से आ गए ?" कांस्टेबल विजय ने चाय सुड़कते हुए कहा.
" विधायक जी की पर्सनल सेक्रेटरी, लीना की आत्महत्या के मामले में विधायक साहब के बेटे का नाम आया है, महिला संगठन वालों को कुछ भनक लग गई हैं, यहाँ धरना देने आ रहे हैं."
"पर सर जी, हमारा धरना कब खत्म होगा यहाँ से ?" उमा ने उकताए स्वर में पूछा.
"अंदर लीना की आत्महत्या के सबूत जुटाने में ही लगे हैं विधायक साहब और एस.पी. साहब. बस उसके बाद..."
................................................

परिचय :
आगमन व प्रतिलिपि कहानी प्रतियोगिता में तीसरा व आठवां स्स्थान. देश की विभिन्न पत्रिकाओं में कहानियां व लघुकथाएं प्रकाशित. दो तीन संयुक्त कहानी संग्रह में भागीदारी.
पता :  12 ए, टावर बी, धीरज संस के समीप, जीडी गोयनका रोड, सूरत, गुजरात
मो. – 9726924095

Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post अग्निशेखर की कविताएं – सुशील कुमार
Next post रामचंद्र ने दी थियेटर को समृद्धि