लघुकथा :: सुरेश सौरभ

AANCH
सुरेश सौरभ की दो लघुकथाएं 
धुंध
भाई इंस्ट्राग्राम में मशगूल था। अचानक सामने आये एक वीडियो को देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। अरे! यह क्या? यह तो बिलकुल सुमन लग रही है। अरे! हाँ हाँ यह तो सुमन ही है…और यह तो उसका खूसठ मालिक़ ही है। वह तूफ़ान की मानिन्द बहन के पास पहुँचा, मोबाइल की झलक उसे दिखा आगबबूला होते हुए बोल पड़ा-ये क्या?…धड़ाक…जैसे सुमन के कलेजे पर एकदम से बिजली गिरी हो, चिंहुक पड़ी। बाढ़ में गिरे कच्चे घरों की दीवारों की तरह भरभरा कर भाई के क़दमों में गिर, रोने-गिड़गिड़ाने लगी- “भैया मैं निर्दोष हूँ। मुझे बचा लो, दुनिया में उड़ती मेरी आबरु को बचा लो।…उस ज़ालिम ने हमें कहीं का न छोड़ा। हमारी ग़रीबी को लूट डाला।”
      “मुझे शुरू से ही वह वहशी लग रहा था। तेरा चौका-बरतन करना मुझे बिल्कुल पसंद न था,पर हाय ग़रीबी। अपने शराबी बाप और माँ की बीमारी के कारण मज़बूरन उससे क़र्ज़ा लेना पड़ा। जब ग़रीब की कोई नस अमीर दबा लेता है, तब उसकी पौ बारह हो जाती है। इसका मतलब यह नहीं कि वह नामुराद हमारी इज़्ज़त से खेले।” भाई ने रोती-सिसकती बहन को सान्त्वना का मरहम लगाया। “तू चिन्ता न कर, तेरे कलेजे पर लगे हर घाव का पाई-पाई हिसाब होगा।”
     फिर सुमन अपने भाई के साथ थाने में पहुँची। रोते हुए अपनी सारी दास्ताँ सुनायी। वीडियो की क्लिप भाई ने थाने के ज़िम्मेदारों को दिखा कर सौंप दी।
      दूसरे दिन, पुलिस सारे सबूत पाकर एक्शन मूड में आ गयी। दुष्कर्मी को दबोचा। वीडियो दिखाकर उससे पूछा- “साले ये क्या? एक ग़रीब लड़की की मज़बूरी का फ़ायदा उठाता है। अब मज़ा उठाना जेल में।”
       दुष्कर्मी की पत्नी रोते हुए पुलिस से बोली- “साहब इन्हें माफ़ कर दें। आप जो कहेंगे आप की सेवा-पानी कर दूँगी।”
        थानेदार रौब में बोला-हमारी सेवा-पानी करना बाद में, पहले अपने आदमी की ख़ैर ख़ुदा से मनाओ। बात अब सोशल मीडिया के घने धुएँ में घुल चुकी है, वैसे हम कुछ करते तुम्हारी अमीरी देखकर, पर अब तो बचना मुश्किल ही नहीं, बिलकुल नामुमकिन है। मैडम जी! पता यह भी चला है कि आप के इंस्ट्राग्राम से ही वह वीडियो गया है। वैसे भी अब छुपाने को कुछ रहा नहीं, अब सब बता दें तो हमें सख़्ती नहीं करनी पड़ेगी।
         दुष्कर्मी की पत्नी पुलिस की रौब-दाब में टूट गयी- “साहब मैं इसे रोज़ मना करती थी”, मुँह लटकाये पति को ओर हिकारत से देख कर, “मैंने लाख मना किया, पर यह अक्सर उस ग़रीब मजलूम लड़की पर ज़ुल्म ढाता था। उस लड़की की, माँ की बीमारी पर इसने तीस हज़ार क्या उधार दिये, उसके बदले यह एक मजलूम की इज़्ज़त से खेलने लगा। एक ग़रीब लड़की तमाम एहसानों और माँ की बीमारी में टूट गयी थी। इस कारण उसकी जुबान बंद थी। एक दिन मैंने चुपके से इसका वीडियो बना लिया। सोचा बाद में, इसे दिखा कर धौंस दूँगी कि अगर दुबारा दुष्कर्म किया तो दुनिया को दिखाऊँगी। ऐसी धमकी से शायद मान जाये, पर उससे पहले ही थोड़ी-सी चूक से…फिर फूट-फूटकर वह रोने लगी।
       थानेदार ने कहा- “ग़लतियाँ नासमझ बच्चों की भले माफ़ कर दी जायें पर तुम जैसे समझदार पैसे वालों की भगवान भी माफ़ नहीं करता। अब मज़बूरन आईटी एक्ट में आप का भी चालान करना पड़ेगा। और आप के पति देव भी, जेल की हवा तो खायेंगे ही खायेंगे।”
         दुष्कर्मी पुलिस के हाथ-पाँव जोड़ कर रहम की भीख माँग कर रो रहा था। उसकी पत्नी भी रोते-तड़पते हुए पुलिस के आगे अपना दामन फैलाकर दया की भीख माँग रही थी। उधर अपने घर में लड़की भी सिसक रही थी। उसके परिवार वालों की आँखों में प्रतिशोध के आँसू थे। हर आँसूओं का मर्मभेद जुदा-जुदा था। झूठ के पैर नहीं होते, सच्चाई पंख लगा कर एक न एक दिन परवान ज़रूर चढ़ती है। सबसे रूबरू ज़रूर होती है। इस बात की गवाही थाने में लिखा ‘सत्यमेव जयते’ दे रहा था।
परिन्दें
सुरंगनुमा उस नाले से निकल कर एक परिन्दा तेजी से भागा जा रहा था। वह एकटक उसे देखने लगी।
“माँ माँ,” कूड़ा बीन रही माँ को बेटे ने झिझोड़ा, “अरे! अपना काम देख, फालतू में  उस जाते परिन्दे को क्या ताक रही है।”
“काश! हम लोग भी ऐसे ही परिन्दे होते और गंदी सुरंग में घुसकर तुरन्त बाहर निकल लेते।..” सुबकने लगी वह।
“तू भी  माँ! बापू को मरे आज बरसों हो गये, पर तू न भूल पायी ?” कूड़े की बोरी संभालते हुए बेटा बोला।
 “अरे! कैसे भूल जाऊँ रे ! वह सेप्टिक टैंक ! वह दर्दनाक तेरे बापू की उसमें मौत। आज जिन्दा होते तो, हमें यूँ गली-गली कूड़ा-कचरा न बीनना पड़ता ।”
अचानक बादल घिरने लगे। हल्की- हल्की बूंदा-बांदी भी शुरू हो गयी। आकाश की ओर कातर दृष्टि से देखते हुए बेटा बोला-“लग रहा, आज हरहरा कर बरसेगा यह मुआ। हमें जल्दी ही इस गंदे नाले से निकल लेना चाहिए।”
हाँ तू सही कह रहा है”-रौद्र रूप वाले उन काले बादलों को माँ ने भय-विस्मय से देखा।
अब बूंदें तेज होने लगीं। माँ-बेटे अपनी-अपनी कचरे की बोरियां संभालते हुए अपनी झुग्गी की ओर तेजी से भागे जा रहे थे। गरज-चमक के साथ बारिश शुरू हो चुकी थी।
अब परिन्दें कहीं नज़र नहीं आ रहे थे।
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पता-  निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश)
पिन कोड- 262701
मो-7860600355

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