पिता की विह्वलता :: डॉ. विद्या चौधरी

पिता की विह्वलता

  • डॉ. विद्या चौधरी

रामलखन बाबू ने अपनी ग्रेजुएट बेटी लक्ष्मी की शादी बहुत समझ-गबुझ कर खानदानी घर एवं अच्छे ओहदे वाले लड़के से किया |
एक साल बाद बेटी की निबंधित डाक से चिट्ठी आई | लिफाफे के एक कोने पर छोटे अक्षर में लिखा हुआ था – “बाबूजी के सिवा और कोई न पढ़े |” संयोग से रामलखन बाबू के हाथ में ही डाकिये ने चिट्टी दी | रामलखन बाबू की नजर कोने में लिखे शब्दों पर गई | वे गंभीर मुद्रा में पत्र लेकर अपनी कोठरी में चले गए | दरवाजे के पल्लों को सटा दिया, ताकि कोई आबे तो पता चल जाए |
रामलखन बाबू ने लिफाफा खोला | लिखा था – “प्यारे बाबूजी ! मेरे लिए प्यार-दुलार, पालन-पोषण, पढ़ाई-लिखाई, शादी-विवाह तक शायद जान के अलाबे आप ने कुछ नहीं बचाया | पर अच्छा होता, मेरा विवाह एक सामान्य पढ़े-लिखे कम ओहदे वाले लड़के से करते !” चिट्ठी पर आँसू की दो बूंदों के निशान पड़े थे |
रामलखन बाबू के सूखे नयन निर्झर बन गए | मन ने कहा – “रामलखन ! तुमने लक्ष्मी को सब कुछ देकर भी कुछ नहीं दिया |”

  • डॉ. विद्या चौधरी , पटना

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