सभी विवश असहाय
एक अजब-सा डर लिखता है
रोज़ नया अध्याय
जग के सम्मुख खड़ा हुआ है
जीवन का संकट
जिसे देख विकराल हो रही
पल-पल घबराहट
कैसे सुलझे उलझी गुत्थी
सभी विवश असहाय
सड़कों पर, गलियों में, घर में
चुप्पी पसरी है
कौन करे महसूस, सभी की
पीड़ा गहरी है
सूझ रहा है नहीं किसी को
कुछ भी कहीं उपाय
आने वाले कल की चिन्ता
व्याकुल करती है
अनदेखी अनचाही दहशत
मन में भरती है
कौन भला छल भरे समय का
समझ सका अभिप्राय
(2) … उम्मीदों से हारे लोग
लौट रहे हैं घर को वापस
पैदल-पैदल सारे लोग
स्वार्थ और छल भरे समय में
किसका साथ मिला
कड़ी मशक़्क़त पर सोने को
बस फुटपाथ मिला
मदद-दिलासा क्या देते वो
सागर से भी खारे लोग
रोज़ी-रोटी के संकट ने
दारुण कथा लिखी
मौनव्रती मर्यादित आंसू
की ही व्यथा लिखी
किससे कहते मन की पीड़ा
हालातों के मारे लोग
स्वर्ण-सुगंधित सपनों का ज्यों
सूरज अस्त हुआ
शहरों का सम्मोहन सारा
पल में ध्वस्त हुआ
इसीलिए ही चले गाँव को
उम्मीदों से हारे लोग
– योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
भीतर प्रश्न तमाम
आज सुबह फिर लिखा भूख ने
ख़त रोटी के नाम
एक महामारी ने आकर
सब कुछ छीन लिया
जीवन की थाली से सुख का
कण-कण बीन लिया
रोज़ स्वयं के लिए स्वयं से
पल-पल है संग्राम
वर्तमान को लील रहा है
डर का इक दलदल
और अनिश्चय की गिरफ़्त में
आने वाला कल
सन्नाटे का शोर गढ़ रहा
भीतर प्रश्न तमाम
खाली जेब पेट भी खाली
जीना कैसे हो
बेकारी का घुप अंधियारा
झीना कैसे हो
केवल उलझन ही उलझन है
सुबह-दोपहर-शाम
– योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
साहित्यिक परिचय
नामःयोगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
पिता का नाम ः स्व0 श्री देवराज वर्मा
जन्मतिथि ः 09 सितम्बर, 1970
जन्मस्थान ः सरायतरीन (ज़िला-सम्भल, उ0प्र0)
शिक्षा ः बी.कॉम.
कृति ः इस कोलाहल में (काव्य-संग्रह)
बात बोलेगी (साक्षात्कार-संग्रह)
रिश्ते बने रहें (समकालीन गीत-संग्रह)
सम्प्रति ः शासकीय सेवा
साधारण पत्राचार का पता ः पोस्ट बॉक्स नं0- 139,
मुख्य डाकघर,
मुरादाबाद-244001 (उ0प्र0)
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