विशिष्ट गीतकार : हरि नारायण सिंह ‘हरि’

बहुत दिनों से तेरा-मेरा रिश्ता तना-तना
सम्बंधों के बीच तना है कुहरा घना-घना

इन्हें पिघल जाने दें अब तो समय बचा थोड़ा
फिर से तार मिलायें दिल के जिसे कभी तोड़ा
वापस ले लें उन शब्दों को जिनने किया मना

जीवन यह तो क्षणभंगुर है, जाने कब क्या हो
इस क्षण को तो जियें प्रेम से, संभव ऐसा हो
ऐसा संभव करें प्यार से कुछ कम हो तपना

प्रेम ही ईश्वर, प्रेम ही सबकुछ, प्रेम ही जीवन है
प्रेम नहीं तो दुनिया फीकी, बस उत्पीड़न है
यह कबीर का ढाई आखर, इसे बचा रखना

(2)
प्रिय! हमारी प्रेरणा तुम, तुम बिना निश्शेष हम हैं
तुम नहीं तो लक्ष्य बिन हम, तुम अगर उद्देश्य हम हैं

तुम हमारी कल्पना साकार करती फिर रही हो
तुम हरित हो प्राण मेरे! तुम जवानी चिर नयी हो
तुम अगर हो साथ मेरे बिन बँटे पूर्णांक हम हैं
तुम नहीं तो हम अधूरे, बिन तुम्हारे शेष हम हैं

तुम नहीं तो डर समाया, तुम नहीं आशंक हम हैं
तुम नदी की धार कल-कल, तुम बिना तो पंक हम हैं
तुम कमल की पंखुरी हो, हम सुवासित गंध मन की
है तुम्हारा साथ प्रिय! जो, तो अरे दरवेश हम हैं

प्रकृति के उपहार अनुपम, साथ तुम तो हास हम हैं
तुम नहीं तो कुछ नहीं हम, बस निरे परिहास हम हैं
तुम जलद हो, तापहर हो, तुम पुरुष की साधना हो
तुम महत्तम इस धरा की, तुम अगर तो देश हम हैं

 

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