विशिष्ट गीतकार- हीरालाल मिश्र मधुकर
उठो जवान
उठो जवान! मातृभूमि को नया विधान दो।
वसुन्धरा पुकारती प्रवीण प्राण दान दो।
उठो किसान, बाल-वृंद, वृद्ध-नौजवां उठो,
उठो कराल काल कालिका के कारवां उठो।
उठो उत्तुंग पर्वतों के गर्व को मरोड़ दो,
प्रचण्ड सिन्धु के घमण्ड को निशंक तोड़ दो।
विहंग नीड़ से उड़ें विशाल आसमान दो।
उठो जवान ! मातृभूमि को नया विधान दो।
उठो कि शत्रु को समेट दो कुटिल बढ़े नहीं,
जो बेलि वृक्ष को सुखा दे, वृक्ष पर चढ़े नहीं।
तुम्हें शपथ गिरीश की ‘पिनाक’ को सँभाल लो,
‘कपीश’ की तरह कनक महाल को खँगाल दो।
रुको, झुको, थको नहीं, जयी नवल विहान दो।
उठो जवान ! मातृभूमि को नया विधान दो।
उठो कि शत्रु देख के सभीत राह छोड़ दे,
प्रकाश की तरह बढ़ो तिमिर निसाँस तोड़ दे।
दुसाध शत्रु का न चाल-ढाल, चित्त ठीक है,
उठो निचोड़ दो, अराति जाति का अभीक है।
करो प्रबल प्रहार शत्रु घात का प्रमाण दो।
उठो जवान ! मातृभूमि को नया विधान दो।