विशिष्ट कहानीकार :: मनोज

मनोज की दो बाल कहानियां
जैसे को तैसा
उत्पल के दिन की शुरुआत नित्य क्रिया और भगवत भजन से होती थी। वह नित्य स्नान के बाद फ्रेम में मढ़े सरस्वती मां की तस्वीर के सामने आंख मूंद, हाथ जोड़कर प्रार्थना किया करता। एक दिन प्रार्थना करते समय उसकी आँख खुली तो उसने देखा कि  सरस्वती मां की तस्वीर के पीछे एक धुंधली सी तस्वीर है। वह गौर से उस तस्वीर को देखने लगा। उसे लगा कोई सरस्वती मां की तस्वीर के पीछे हाथ जोड़े खड़ा है। वह पूजा करना छोड़कर माँ के पास गया और बोला, “मम्मी! मेरे पूजा वाले तस्वीर में सरस्वती माँ की तस्वीर के पीछे किसी की तस्वीर दिख रही है।”
बेटे की जिज्ञासा के साथ माँ को भी जिज्ञासा हुई। वह अपना काम छोड़कर  उत्पल के संग आई और गौर से सरस्वती माँ की तस्वीर देखने लगी। उसे सरस्वती माँ के पीछे कोई तस्वीर नहीं दिखी। फिर वह बेटे से पूछी, “यहां तो कोई तस्वीर नहीं दिख रही बेटा।”
उत्पल फिर से प्रार्थना करने की मुद्रा में खड़ा हुआ कि उसे फिर से तस्वीर दिखी। वह कौतूहल से बोल उठा, “देखो माँ, देखो।उस तस्वीर को गौर से देखो। मैं जब प्रार्थना के लिए हाथ जोड़ता हूँ तो वह भी हाथ जोड़ लेता है।”
माँ सीसे को गौर से देखी तो उसके मन में उपजे भ्रम का तत्काल ही समाधान निकल गया। जब उसे यह पता चला कि सरस्वती मां की तस्वीर के पीछे की तस्वीर उसके बेटे की ही प्रतिच्छाया है। वह सीसे में दिख रहे तस्वीर के बारे में समझाने के लिए कुछ पल गंभीर हो सोचने लगी। फिर बेटे के माथे पर प्यार से अपना हाथ सहलाते हुए पूछी, “क्या तुम्हारे हाथ जोड़ने से सीसे में दिख रहा बच्चा भी हाथ जोड़ लेता है?”
 उत्पल ने कहा, “हाँ मम्मी।”
माँ ने फिर सवाल किया, “तस्वीर वाले बच्चे को किस करो तो? क्या वह भी तुम्हें किस करता है?”
 उत्पल ने तस्वीर को फ्लाइंग किस किया तो तस्वीर से उत्पल को भी फ्लाइंग किस करने जैसा दिखा। “हाँ, हाँ” कहते हुए वह मम्मी का मुँह आश्चर्य से देखने लगा।
माँ ने बेटे की उत्सुकता बढ़ाने के लिए अगला सवाल किया, “जरा, तुम उस बच्चे को चिढ़ाओ तो।”
फिर उत्पल ने वैसा ही किया। तस्वीर वाले बच्चे ने भी उत्पल  को चिढ़ाया। अब उत्पल बहुत ही असमंजस में पड़ गया। वह परेशानी व्यक्त करते हुए बोला, “मम्मी! यहाँ सरस्वती माता की तस्वीर तो आइने जैसा लग रहा है।”
माँ बेटे को समझाती हुई बोली, “हाँ बेटा! सरस्वती माँ तुम्हें सीख दे रही हैं कि तुम किसी दूसरे के साथ जैसा व्यवहार करोगे, वह भी तुम्हारे साथ वैसा ही व्यवहार करेगा।”
कागराज और बुद्धसेन
 कमलपुर गाँव के विद्यालय परिसर में कई वृक्ष लगे हुए थे। वृक्षों पर सुबह-शाम पक्षियों का कलरव होता। दिन में दूर की सैर पर निकले पक्षी भी शाम में अपने घोसले में वापस आ जाते।
  एक दिन की बात है। पक्षियों का समूह शाम को जब वापस आ रहा था तो बुद्धसेन नामक कौआ अपने मित्र कौवों के साथ किसी दूसरे स्थान से उस स्कूल परिसर में आ गया। दोस्त कौवों के संग शाम में आया बुद्धसेन देर तक मेहमान बाजी में रह गया और दोस्तों के संग सो गया। अहले सुबह जब उसकी नींद खुली तो स्कूल परिसर के बगल में कूड़े का ढेर देख सोचने लगा, “कैसा है यह गाँव, जहाँ स्कूल के आसपास साफ-सफाई के बजाय कूड़े का ढेर है? कैसे हैं सर और विद्यार्थी जो कूड़े पर नियंत्रण नहीं करवा पा रहे हैं? वह कौवा और कुत्तों के बारे में भी सोचने लगा कि वे सभी इसका   निपटान क्यों नहीं कर देते हैं?”
   वह इन्हीं बातों को सोच रहा था कि उसकी नजर अपने मित्र कागराज पर पड़ी। उसने कहा, “भाई कागराज! तुम जहां रहते हो वहाँ इतने कूड़ो का ढेर क्यों है? तुम्हें अपनी प्रजाति के कौवों और इलाके के कुत्ते दादा की मदद से इनका निपटान तो कर देना चाहिए।”
    कागराज ने बुद्धसेन के समक्ष अपनी समस्या बताते हुए कहा, “मित्र बुद्धसेन!   बात यह नहीं है कि हमने या अन्य जीवों ने इसके निपटान का प्रयास नहीं किया। बात है कि कचरे का निपटान हो नहीं पा रहा है। पहले हम सभी कौवों ने मिलकर कचरा समाप्त करना चाहा, किंतु वह समाप्त नहीं हो पाया। फिर हम लोग कुत्ते दादा को बुलाए। कुत्ते दादा भी हमारे साथ कचरा निपटान करते रहे, किंतु सभी कचरा समाप्त नहीं हो सका। फिर मैं और कुत्तों के सरदार शेरु दादा मिलकर सूअर महाशय के यहाँ गए। हम लोगों ने उन्हें अपनी समस्या बताया। कल होकर सूअर महाशय एक बड़े समूह के साथ यहां आए। आते ही उन्होंने कहा – कचरे का ढेर कितना भी बड़ा हो हम सभी आज ही उसे समाप्त कर देंगे। हम लोगों  के इसी गुण के कारण तो हमें प्रकृति का सबसे बड़ा सफाई कर्मी माना जाता है। सूअर महाशय की बात से हम कौए और कुत्तों को बहुत खुशी हुई कि आज हमारे गाँव के विद्यालय के बगल से कचरे का ढेर समाप्त हो जाएगा। फिर सूअर महाशय अपने दल बल के साथ सुबह से शाम तक कचरे के निपटान में लगे रहे, किंतु कचरा समाप्त नहीं हो पाया। देर शाम को सूअर महाशय निराश होकर कहने आए, दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि यह कचरे का ढेर समाप्त नहीं हो पाया। हम आप सभी प्राकृतिक सफाई कर्मी हैं और यहाँ कृत्रिम कचरे का ढेर है। आप तो जानते ही हैं कि प्राकृतिक कचरे को ही हम आप समाप्त कर सकते हैं। कृत्रिम कचरा को कृत्रिम तरीके से ही समाप्त करना होगा। इसे समाप्त करने की जिम्मेदारी मनुष्य की ही है। वह चाहे तो कृत्रिम तरीके से उसे समाप्त करें या कचरे के ढेर पर ही रहे। फिर सूअर महाशय अपने दल बल के साथ वापस लौट गए। क्या कहूँ मित्र! हम पशु-पक्षियों ने तो बहुत प्रयास किया, किंतु मनुष्य के कारण से हम लोग कचरे के ढेर  पर ही अपना जीवन बिताने को अभिशप्त हो गए हैं।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post रेलवे किसी की निजी संपत्ति नहीं :: आशुतोष कुमार
Next post विशिष्ट गीतकार :: कुँअर उदय सिंह अनुज