दोहे : जयप्रकाश मिश्र

सोने जैसी बेटियाँ, भिखमंगें हैं लोग।
आया कभी न भूल कर, मधुर-मांगलिक योग।। 11

लिपट तितलियाँ पुष्प से , करती हैं मनुहार।
रंगों का दरिया बहे, बरसे अमृतधार।।12

चेहरे से चेहरे मिले, बजे हृदय में तार।
तंग नजर है पारखी, उसपर यह शृंगार।। 13

सपनों की अट्टालिका, अनुपम तेरा चित्र।
तेरे -मेरे प्यार में, तप है छिपा विचित्र।।14

गंध उड़ी ,मधुकर उड़े, लगे भटकने ध्यान।
कोयल कूके बाग में, मोहित सकल जहान।।15

बच्चे भी पढ़ने लगे, तीर, धनुष, तलवार।
दिल मेरा जलता रहा, देख हजारों बार ।।16

नित-नित बढ़ते जा रहे,मूढ़ों के अभिमान।
दीपक भी कहने लगा, अब खुद को दिनमान।।17

सुन्दर, सुमुखी, कामिनी, तिल शोभे मृदु गाल।
कण-कण उच्छृंखल हुआ, मौसम करे कमाल।।19

देवालय -सा दीखता, गोरी तेरा रूप।
सभ्य, सौम्य तुम सुबह-सी, चमक रही ज्यों धूप।। 20
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परिचय : लेखक दोहे, कविता व गीत में विशेष पकड़ रखते हैं. इनकी कई रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. ये शिवहर (बिहार) में रहते हैं.

 

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