ब्रज श्रीवास्तव की तीन कविताएं
1
कुछ बिंब ठंड की सुबह के
शीतसुबह
क
कमरे में जलते बल्ब
से ज्यादा नहीं प्रतीत हो रहा
घर के बाहर
उगा सूर्य
ख
मुमकिन है
हिम
भी ठिठुरन
महसूस कर रहा हो
इस समय
ग
उष्णता
एक यूटोपिया की तरह
महसूस हो रही है
दुर्लभ है जो
एक तीली
सबसे जरूरी चीज हो गई है
घ
बस पालतू कुत्तों को
मिल रहा है साया
पशुओं ने
फिर अपने मूक
को धिक्कारा
हालांकि मनुष्य की
सामर्थ्य में नहीं है
असंख्य पशुओं को
घर दे देना
अभी तो बहुतेरे मनुष्य ही
सो रहे हैं
खुले में
ड.
नदी तालाब
पर ठहरे पत्ते
कहां जाएं
बस गिन गिन कर
पार रहे हैं
एक एक क्षण
ज्यादा लोग
दो वर्गों में
बराबरी से नहीं बँटी थी दुनिया
बेरोजगार ज्यादा लोग थे
बैठे थे प्रतीक्षालय में
पैदल चल रहे थे
प्रार्थना पत्र लिखे जा रहे थे
ज्यादा लोगों के मन में
छूट गये थे यात्रा में
ज्यादा लोग उद्विग्न थे
समझौते लेते समय
वे ही
जी रहे थे श्वसन के संग
उन्हीं में से
कुछ लोग कभी कभी
कम लोगों में शामिल हो जाते थे
भर जाता था
ज्यादा लोगों वाला सवारी डिब्बा
जो अक्सर देख लेते थे
जीवन के चित्र के अधिकतर रंग
परिश्रम से रोजी रोटी अर्जित करने के लिए
ज्यादा लोग प्रवेश करते थे
अगले दिन की कोह में
कम से शत प्रतिशत विलग
था ज्यादा लोगों का महा समूह
मैं ज्यादा लोगों में शामिल हूंँ
आजाद
बादल से छूटकर
एक बूँद आजाद होती है
एक बीज आजाद होता है
प्रस्फुटित होकर
एक हर्फ लिखकर आजाद होती है कलम
एक रूदन करके
जातक आजाद होता है
एक स्वर आजाद होता है
फूटकर कंठ से
हारमोनियम के
एक आवाज
आजाद होती है
सच को जोर से बोलकर
एक व्यक्ति
अनेक तरह से गुलाम है
मगर हो जाता है आजाद
हँसकर
किसी का खुशी से होकर
और साहस भरा
एक कदम बढाकर
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परिचय : ब्रज श्रीवास्तव की कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं