सपना मंजुल भावका
– नंद कुमार आदित्य
सिलसिला आपकी तगाफुलका
दर्द पिंजरेमें बन्द बुलबुलका
बागवाँ लाख कोशिशें कर ले
हश्र क्या शाखसे गिरे गुलका
हादसोंसे सबक कहाँ लेते
ध्यान किनको है टूटते पुलका
बदगुमानी पे भी सियासत है
चर्चा आधेका है कहाँ कुलका
अब तो तालीम भी तिजारत है
कैसे मुमकिन हो मिलना गुरुकुलका
खुद धरोहर गँवा के बाबाकी
आज पछतावा जैसे पुत्तुलका
रंगके नाम केमीसिन्थ मिले
अब कहाँ रंग टेसू अड़हुलका
रंग कृत्रिमकी होली क्या हो ली
राग रूठा कहाँ वो सरहुलका
गन्ध माटीकी लगती थी सोंधी
आज सपना है भाव मंजुलका
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