1
कब तलक मुर्दा बने सोते रहोगे
ज़िंदगी की लाश को ढोते रहोगे
हाथ पर धर हाथ यदि बैठे रहे तो
वक़्त को यूँ ही सदा, खोते रहोगे
दीन दुनिया में ही गर उलझे रहे तो
आप खुद से बेखबर, होते रहोगे
ज़ुल्म के प्रतिशोध से पीछे हटे जो
खून के आँसू बहा, रोते रहोगे
जो न कस पाए शिकंजा लाड़लों पर
बाप होकर पाप को धोते रहोगे
आप रटते ही रहे अरु वो रटाते
आप तोते के मियां तोते रहोगे
पाल बैठे जो अगर ‘रवि’ द्वेष, ईर्ष्या
बैर को मन में सदा, बोते रहोगे
2
पेड़ पौधों का नहीं आधार होता
साँस लेना भी यहाँ दुश्वार होता
वापसी का आपकी, अधिकार होता
इस कदर जनमत नहीं लाचार होता
ज़िंदगी में जो न होती बेबसी तो
स्वप्न अपना भी कभी साकार होता
धर्म के यदि जात के परचम न होते
आदमी को आदमी से प्यार होता
देश में आया न होता काश! कोविड
रोज का सा ही यहाँ त्योहार होता
जो न होती मार कर की आदमी पर
मुक्त हाथों से ‘रवि’ व्यापार होता
3
इतनी भी मत खाई रख
थोड़ी तो संभाई रख
वक़्त जरूरत की खातिर
संचित पाई – पाई रख
आज दिवस मोहलत दे दे
बेशक कल सुनवाई रख
प्रभु की माया के चलते
पर्वत सँग-सँग राई रख
दुनिया देती साथ नहीं
साथ सदा परछाई रख
गैरों सा व्यवहार न कर
कुछ अपनापन, भाई रख
झूठ पराजित होगा ही
खुलकर पर सच्चाई रख
4
पाँव बिना पर्वत चढ़ते हैं
पंख नहीं फिर भी उड़ते हैं
ज्ञान नहीं जिनको अक्षर का
वो हर इक चेहरा पढ़ते हैं
बाज न आते हैं आदत से
झूठ नया जो नित गढ़ते हैं
जो होते हैं द्रढ संकल्पित
जीवन में आगे बढ़ते हैं
रात बिताते हैं जो छत पर
रोज नई दुनिया गढ़ते हैं
स्वप्न न जो साकार हुए ‘रवि’
आँखों में रह-रह गड़ते हैं
5
तख्त-ओ-ताज बदलना है
कल से अनशन धरना है
मुश्किल चाहे जितनी हों
आगे बढते रहना है
डरता है क्या, पानी से
अंगारों पे चलना है
आना जीवन के मानी
जाना यानी मरना है
अपनी – अपनी करनी का
सब को पानी भरना है
वक़्त निकल जाने पर ‘रवि’
बस हाथों को मलना है
…………………………………………………………..
परिचय – रवि खण्डेलवाल की ग़ज़लें निरंतर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं. 2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें, “यह समय कुछ खल रहा है” (ग़ज़ल@लॉकडाउन), ख्वाहिशों की रोशनी आदि प्रमुख समवेत ग़ज़ल संकलनों में ग़ज़लें समाहित है
संपर्क सूत्र – 207 – वेंकटेश नगर, एरोड्रम रोड, इन्दौर (म.प्र.)
मो. 7697900225
ई-मेल :- ravikhandelwal14sep@gmail.com