गंदगी मनकी सहेली
जिंदगी उलझी पहेली हो चली
सादगी सूनी हवेली हो चली
योजना तो थी प्रदूषण दूर हो
गंदगी मन की सहेली हो चली
दोष पौधेका नहीं माली का था
नीम की साथिन करेली हो चली
मानिनी अवमानना है झेलती
लालसा जबसे रखेली हो चली
शिष्टता को दर्द की दौलत मिली
स्वामिनी खाली हथेली हो चली
कोकिला के पंख कुतरे जा रहे
सिर छुछुंदर के चमेली हो चली
ठेस देकर देश के विश्वास को जब विदेशी रंगरेली हो चली
रुपजीवा क्या निगोड़ी सिर चढ़ी
हिंद में हिंदी अधेली हो चली
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परिचय : कवि की कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.
सपंर्क : कविवासर 603, ए बालाजी जेनरोसिया, यूथिका सोसाइटी के समीप, बाणेर, पुणे – 411045
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खास कलम : नंद कुमार आदित्य
