वर्तमान यथार्थ का : ‘अनकही अनुभूतियों का सच’
वस्तुतः काव्य मानवीय संवेदना की भावाभिव्यक्ति है, जिसमें समग्र यथार्थ के साथ तदात्म्य स्थापना की प्रक्रिया चलती रहती है। कविता का काम है लोगों में चेतना को जगाना। कविता ही मानव जीवन के यथार्थ से जुड़कर मानवीय चेतना और आत्मा का नवनिर्वाण करती है। बावन विभिन्न विषयों के सारगर्भित कलेवर से सजा ‘अनकही अनुभूतियों का सच’ काव्य संग्रह अरविंद भट्ट का प्रथम काव्य संग्रह है। उनके प्रथम काव्य संग्रह को पढ़कर यह कतई महसूस नहीं होता कि संग्रह की कविताओं का सृजन एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने किया है। अपितु लगता है वर्षों-वर्ष काव्य साधना में लीन, भावों, शब्दों में पूर्णतः पका हुआ व्यक्तित्व ही कविता के रूप में उभर कर परिलक्षित हो रहा है। कविताओं को पढ़कर लगता है कि अरविंद जी ने अपनी कविताओं में एक-एक शब्दों को, भावों को, अनुभूतियों को मोतियों की तरह अत्यंत सहजता से पिरोया है। कविताओं में अद्भुत भाषिक संयम है। संग्रह की समस्त कविताओं में अरविंद जी की व्यापक दृष्टि, विषयों का वैविध्य, कथन का प्रभावशाली अंदाज इन्हें प्रेरक और युगीन सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। कवि का अध्यात्म व प्रकृति के प्रति विषेष रुझान है यह उनकी कविताओं में दृष्टव्य होता है।
महानगरीय जीवन जीने वाले रचनाकार को प्राकृतिक वातावरण आकृष्ट करता है। गाँव का जीवन उसे बार-बार स्मरण होता है। मेरा बचपन, यादें, दौरा, कोल्ड ब्लेडड मर्डर, देहरी, धुंध, संरक्षण, तुम आना बादल आदि कविताएँ मानवीय संवेदनाओं की ऐसी परतों को खोलती हैं जिसमें स्पर्श की मिठास तथा छुअन की आत्मीयता है। काव्य रचनाओं को पढ़कर ऐसा लगता है वर्तमान में समाजिक एवं प्राकृतिक बदलाव को कवि ने काफी निकटता से अनुभव किया है।
आज समाज का वातावरण पर्यावरण की तरह ही प्रदूषित है, भीतर और बाहर आदमी के लिए घुटन भी है और चुभन भी। सुख-सुविधाओं के तमाम साधन हमने जुटा लिए हैं, विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है। इस आधुनिकता के दौर में वर्तमान पीढ़ी और उसकी जीवनचर्या अत्यंत प्रभावित हुई है। 24X7, प्रगति, परिवर्तन, प्रश्न, अग्रदूत, अधिग्रहण, अहमियत जैसी कविता मानसिक द्वंद्वों को उद्घाटित करती हुई प्रतीत होती ही है साथ ही समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और अन्याय की ओर भी सचेत होने को अगाह करती नज़र आती है।
विविधता और व्यापकता काव्य संग्रह की रचनाओं में व्याप्त है। अनेक रचनाएँ तो दार्षनिक चिंतन की गहराई तक ले जाती है। सरलीकरण, अनुकूलन, मुक्ति संरक्षण संग्रह की कुछ ऐसी ही कविताएँ हैं। जीवन की सरलता के नायाब तरीके स्पष्ट करते हुए कवि लिखता है- ‘बस एक बात का स्मरण रखना, जीवन मूलभूत उद्देष्य उसके सरलीकरण में है, उसकी सादगी में है। उसको इतना कठिन मत बना देना कि उसका अपना उद्देष्य ही विस्मृत हो जाए, समीकरणों के हल की तलाश में।’
जीवन में संबंधों की अहं भूमिका होती है। चाह वह पारिवारिक हो, सामाजिक हो या अपने देश, गाँव, शहर से हो। इन सभी रिश्तों के प्रति मनुष्य अत्यंत उदार व संवेदनशील होता है। माँ की महिमा अतुल्य है उसकी याद भूलती ही नहीं। ‘धुंध’ कविता इस भाव को स्पष्ट करती है। उसी तरह से संबंध, एक बार फिर, अपराधबोध, तुम्हें आना ही होगा, चार दिन, सफर, एक दिन आदि कविताएँ मानवीय संबधों की, पारिवारिक दरकते रिश्तों की, प्रीत की, वेदना की, सांस्कृतिक मूल्यों की, स्त्री वेदना की नई परिभाषा गढ़ती नज़र आती है। आधुनिकता में डूबा युवा मन संबंधों के प्रति कितना उदासीन होता जा रहा है। इन भावनाओं से युक्त संग्रह की कुछ कविताएँ पाठक के अंतर्मन को झकझोर कर रख देती है। एेसा लगता है संग्रह की एक-एक रचना पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक संस्कारों और उनसे प्रदत्त पीड़ाओं को सहकर, पल्लवित होती, अनुभूति की गहराइयों को चित्रित करती हुई, विशेष भाषा
गरिमा के साथ अनोखापन लिए हुए सरसता से झरने की तरह फूट पड़ती है। अरविन्द जी की कविताओं में बड़बोलापन नहीं बल्कि उनमें एक सादगी दृष्टिगोचर होती है। स्वयं को बहुत ऊँचा स्थापित करने की मनोभावना नज़र नहीं आती, मगर एक आत्मविश्वास अवश्य झलकता
है। पुकारो मुझे कविता नई उर्जा से फलीभूत है। भाव कुछ इस तरह से व्यक्त हुए हैं –
मैं गिरूँगा, गिर-गिर कर उठूँगा,
पर इस बार मैं नहीं हारूँगा,
नहीं डिगेगा मेरा आत्मविश्वास।
X X X X X
राह में बिखरे काँटे रोकेंगे मुझे पग-पग पर
पर मैं रुकूंगा नहीं
पैरों में चुभने वाले इन काँटां का दर्द ही
हर बार मुझे देगा, एक नई प्रेरणा, नया विश्वास
संग्रह की शीर्षक कविता ‘अनकही’, ‘अनुभि तयो का सच’ कवि की संघर्षषीलता, अपनी अनुभूतियों काे शब्दाें के द्वारा साकार बनाना और उसी सृजनशीलता में चिरजीवित व तल्लीन होने के भाव सत्चरित होते दिखाई देते हैं –
उतर पडूँगा इसी अथाह समन्दर में
इस चाह में कि
शायद इस बार मैं पा ही जाऊँ
कुछ ऐसा,
जिससे रच सकूँ एक कालजयी कविता को,
अपनी अनुभूतियों के सच को।
समग्रतः अरविन्द जी का काव्य संग्रह गागर में सागर है, जाे उनके कवि रूप की संभावनाओं को एक विस्तृत आकाश प्रदान करता है। वर्तमान की ज्वलंत समस्याओं को उन्हाेंने जिस ढंग से छूने का प्रयास किया है उसमें चिंतन की गहराई है आरै उज्ज्वल भविष्य के सूर्योदय का संकेत भी है। कथ्यात्मक रूप की लंबी कविताएँ, भाषा शैली, शिल्प सौंदर्य, प्रतीकों, बिंबों सभी का सामांजस्य लिए हुए अरविन्द जी का प्रथम काव्य संग्रह आधुनिक काव्य साहित्य
में कविता को संबल प्रदान करने में सक्षम होगा। पुस्तक का मुखपृष्ठ, छपाई अत्यंत खूबसूरत है, शुद्ध वर्तनी के लिए साधुवाद। साथ-साथ समीक्षाएँ पुस्तक के प्रारंभ में दी गई विभिन्न विद्वानों द्वारा अरविन्द जी की काव्य प्रतिभा व उनके साहित्यिक व्यक्तित्व को व्यक्त करती सटीक वह सार्थक प्रतीत हो रही है, जिसे
पढ़कर अरविन्द जी की साहित्यिक व वैयक्तिक विशिष्टताएँ उद्घाटित होती चली जाती है। यह भी उनके लिए गौरव की बात है।
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समीक्षक
– डॉ. सपना तिवारी
क्रिस्टल पॅलेस II, 103, आवलेबाबू चौक
लक्ष्करीबाग, नागपुर-440017
मो. 9960606844