लोग कविता में स्वाद देखते है
उस खून को नहीं देखते
जो स्याही बनकर टपकता है आँखों से
कुछ लोगों को आदत है
शब्दों को ईधर उधर करने की
ये जादूगर है
कविता को गायब कर देते है
एक सच्ची कविता
उस अनपढ़ मजदूर के पास है
जो लिख नहीं सकता
उसे सुनने के लिए
एक तपती दुपहरी में नंगे पाँव चलना होगा
उसने कई दिनों भूखे रहकर
तुम्हारे शब्दावली को किया है पराजित
सच कहूँ तो
असल में वह कवि नहीं है
जिसके पास शब्द है
सच्चा कवि वह है
जिसके पास जबान है
और दुखों का स्वाद है ।
लोग आ तो रहे है
लोग आ तो रहे है
रात छँट तो रहीं है
चेहरे पर थोड़ा थोड़ा लिखा तो है
कोई हँसता हुआ शाम तक पहुँचा तो है
अब सुबह के पास कुछ वजह तो है
अब रोशनी में कुछ दिखा तो है
आसमान अब झुक रहा है
मुझे लगता है कोई सदियों का सोया
अब अनवरत चल रहा है।
सुनो हे कवि
सुनो हे कवि
तुम क्या लिखोगे कविता
कोई भी मौसम न हो जिसका
वह वक्त से लड़ता है
जिसके पास जबान का स्वाद है
उसके पास सबसे अधिक कड़वाहट है
एक अंधेरे कुएँ में झाँककर
वह आदमी अंधा हुआ है
उसकी प्यास पर सदियों का सदमा है
वह आदमी अब शब्दों के कालेपन से निकलकर
नदियों के तटों से फिसलकर
सच और आदमीयत का बोझ ढ़ोकर
एक सभ्यता की सरहद पर
हाशिये पर चल रहा है
कविता केवल शब्दों का हेर फेर नहीं
या कि केवल सुविधा का चेहरा नहीं
तुम उसे कविता में न उलझाओ
वह आदमी कविता से भी गहरे उतर गया है
वह किसी ग्रंथ या महाकाव्य में नहीं
वह पगडंडीयों के किनारे उगा हुआ पेड़ है
इसलिए हे कवि सुनो
तुम क्या लिखोगे कविता
जबकि तुम तो डरे हुए हो
एक काली परछाई से।
एक मरती हुई रात
और टूटते हुए सपनें काफी नहीं हैं कविता के लिए
इसलिए हे कवि
पहले जिंदगी के अंधेरों में
रोशनी का क्षितिज बनाओ
और उसे देखकर कदम बढ़ाओ
नहीं तो यहीं रूक जाओ।
न्यायालय में अकेले बैठे हुए लिखी कविता
मैं अकेला बैठा हूँ
जैसे बैठा रहता है न्याय अकेला
एक पेड़ भी बैठा है मेरे साथ अकेला
वह सदा रहा है मौन
मैं उसे सुनना चाहता हूँ
वह मुझे कुछ कहना चाहता है
तभी होती है पत्तियों में सरसराहट
अचानक सुनाई पड़ती है पंछियों की चहचहाट
पेड़ ने अपने अकेलेपन को भर दिया
पत्तियों और पंछियों में
मैने अपना अकेलापन समेटा
और चल पड़ा दुनिया में।
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परिचय : संजय छिपा चर्चित कवि हैं। इनकी कई कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
संपर्क: गाँव- मंगरोप, तहसील- हमीरगढ़, जिला- भीलवाड़ा
राजस्थान
मो – 99291 73184