घिर रही हैं बदलियां अब जाने किधर
घिर रही हैं बदलियां अब जाने किधर
ना जाने किस देस में ठनका गिरा है
किस दिशा में मेघ ने खुद ही उतर कर
दूब को सहला दुबारा भर दिया है
कौन कहता था उसी के घर बराबर
नदी तट पर सोन मछरी तैरती है
किस तलैया से उठी अबकी ये पुरवा
रोक कर रस्ता ये मेरा छू लिया है
छू लिया है आम की किस शाख ने मुझको अभी यूँ
मंजरों से महक मन बौरा गया है
फाग के किस रंग ने बिंध दृष्टि मेरी
सरहदों के पार फिर डेरा किया है
सेब के बागान थे जिस सड़क किनारे
उस गली का नाम फिर पूछा किये हैं
हम जहाँ अब भटकते हैं दर ब दर
उस शहर की रंगतों का
हाल क्या है?
हाल क्या है बोल दो अभी सकारे
साँझ की अब बाट कौन जोहता है?
कौन बैठा है वहां तकता नीले आसमान को
इस शहर में दिखती नहीं सुबह की किरण
सांझ का मतलब अँधेरा गाड़ियों की रौशनी है
एक मुट्ठी उजलेपन की आस में डूबा हुआ मन
देखता है राह अब किस ओर होकर जा रही है
बर्फ़ भी गिरती नहीं हर साल अब यहाँ
पर्बतों पर कट रहे बुरांस भी
कोई तो बोलो उसे कह दो अभी
जंगलों में बिक रहे अब मोर हैं
किस बियाबाँ से उठी आवाज़ है यह?
मोरनी है? है पपीहा या कि मेरा ही ह्रदय है?
किस नदी की बाढ़ में डूबा हुआ घर
किस शहर से भेजता फ़रियाद है?
कागज़ों की भीड़ में खोया हुआ
छूटे नगर का घर वो मेरा याद है!?
मकई के खेतों की उनकी भूल भुलैय्या
तंदूर की किस आंच पर अब सिंक रही है?
नए नवेले घर का मेरा नया चूल्हा
किस कड़ाही के नए पकवान
अब वह तल रहा है?
भेजो मुझे एक बार फिर से
कोई तो भेजो
कोई ख़बर ज़िन्दगी की
उस ठाँव से
फिर बुलाओ मुझको मेरे पड़ोसियों
एक बार फिर लगाएं कहकहा….
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परिचय: युवा लेखन में महत्वपूर्ण हस्ताक्षर। रचनाओं का निरंतर प्रकाशन
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