श्रद्धांजलि :: अमन चांदपुरी / शब्दों के फूल : कैलाश झा किंकर
उम्र छोटी थी मगर साहित्य में रमता था मन।
भेंट लखनऊ में हुई थी आपसे गत वर्ष ही
इतनी जल्दी इस जहां से कैसे कर सकते गमन ।
उम्र थी बाईस की पर प्रौढ़ दोहाकार थे
शब्द की ताकत बहुत थी आपमें था सच कथन।
आपकी ग़ज़लों की जो तासीर थी अनमोल थी
कौशिकी परिवार कैसे दुख करेगा यह सहन।
आपका जाना हमारे बीच से घटना बुरी
मन टिका है आप पर कमजोर अब लगता है तन।
एक मच्छर ने बिगाड़ा खेल ही साहित्य का
रो रहा है बाग सारा रो रहा अहले चमन ।
– कैलाश झा किंकर