देवी धरती की
दूब देख लगता यह
सच्ची कामगार
धरती की
मेड़ों को साध रही है
खेतों को बाँध रही है
कटी-फटी भू को अपनी-
ही जड़ से नाथ रही है
कोख हरी करती है
सूनी पड़ी हुई
परती की
दबकर खुद तलवों से यह
तलवों को गुदगुदा रही
ग्रास दुधरू गैया का
परस रहा है दूध-दही
बीज बिना उगती है
देवी है देवी
धरती की
चिड़िया और चिरौटे
घर-मकान में
क्या बदला है,
गौरेया रूठ गई
भाँप रहे बदले मौसम को
चिड़िया और चिरौटे
झाँक रहे रोशनदानों से
कभी गेट पर बैठे
सोच रहे अपने सपनों की
पैंजनिया टूट गई
शायद पेट से भारी चिड़िया
नीड़ बुने, पर कैसे
ओट नहीं कोई छोड़ी है
घर पत्थर के ऐसे
चुआ डाल से होगा अण्डा
किस्मत ही फूट गई
हिरनी-सी है क्यों
छुटकी बिटिया अपनी माँ से
करती कई सवाल
चूड़ी-कंगन नहीं हाथ में
ना माथे पर बैना है
मुख-मटमैला-सा है तेरा
बौराए-से नैना हैं
इन नैनों का नीर कहाँ-
वो लम्बे-लम्बे बाल
देर-सबेर लौटती घर को
जंगल-जंगल पिफरती है
लगती गुमसुम-गुमसुम-सी तू
भीतर-भीतर तिरती है
डरी हुई हिरनी-सी है क्यों
बदली-बदली चाल
नई व्यवस्था में क्या, ऐ माँ
भय ऐसा भी होता है
छत-मुडेर पर उल्लू असगुन
बैठा-बैठा बोता है
पार करेंगे कैसे सागर
जर्जर-से हैं पाल
कविता
हम जीते हैं
सीधा-सीधा
कविता काट-छाँट करती है
कहना सरल कि
जो हम जीते
वो लिखते हैं
कविता-जीवन
एक-दूसरे में
ढलते हैं
हम भूले
जिन खास क्षणों को
कविता याद उन्हें रखती है
कविता
याद कराती रहती है
वे सपने
बहुत चाहने पर जो
हो न सके
हैं अपने
पिछड़ गए हम
शायद – हमसे
कविता कुछ आगे चलती है
पगडंडी
सब चलते चौड़े रस्ते पर
पगडंडी पर कौन चलेगा?
पगडंडी जो मिल न सकी है
राजपथों से, शहरों से
जिसका भारत केवल-केवल
खेतों से औ’ गाँवों से
इस अतुल्य भारत पर बोलो
सबसे पहले कौन मरेगा?
जहाँ केन्द्र से चलकर पैसा
लुट जाता है रस्ते में
और परिधि भगवान भरोसे
रहती ठण्डे बस्ते में
मारीचों का वध करने को
फिर वनवासी कौन बनेगा?
कार-क़ाफिला, हेलीकॉप्टर
सभी दिखावे का धंधा
दो बित्ते की पगडंडी पर
चलता गाँवों का बन्दा
कूटनीति का मुकुट त्यागकर
कंकड़-पथ को कौन वरेगा?
समय की धार ही तो है
समय की धार ही तो है
किया जिसने विखंडित घर
न भर पाती हमारे
प्यार की गगरी
पिता हैं गाँव
तो हम हो गए शहरी
ग़रीबी में जुड़े थे सब
तरक्की ने किया बेघर
खुशी थी तब
गली की धूल होने में
उमर खपती यहाँ
अनुकूल होने में
मुखौटों पर हँसी चिपकी
कि सुविधा संग मिलता डर
पिता की ज़िंदगी थी
कार्यशाला-सी
जहाँ निर्माण में थे-
स्वप्न, श्रम, खाँसी
कि रचनाकार असली वे
कि हम तो बस अजायबघर
बुढ़ाए दिन
लगे साँसें गवाने में
शहर से हम भिड़े
सर्विस बचाने में
कहाँ बदलाव ले आया
शहर है या कि है अजगर
बच्चा सीख रहा
बच्चा सीख रहा
टीवी से
अच्छे होते हैं ये दाग़
टॉफी, बिस्कुट, पर्क, बबलगम
खिला-खिला कर मारी भूख
माँ भी समझ नहीं पाती है
कहाँ हो रही भारी चूक
माँ का नेह
मनाए हठ को
लिए कौर में रोटी-साग
अच्छे होते हैं ये दाग़
बच्चा पहुँच गया कॉलेज में
नेता बना जमाई धाक
ट्यूशन, बाइक, मोबाइल के
नाम पढाई पूरी ख़ाक
झूठ बोलकर
ऐंठ डैड से
खुलता बोतल का है काग
अच्छे होते हैं ये दाग़
हुआ फेल जब, पैसा देकर
डिग्री पाई बी.टेक. पास
दौड़ लगाई रजधानी तक
इंटरव्यू ने किया निराश
बीच रेस में
बैठा घोड़ा
मुंह से निकल रहा है झाग
अच्छे होते हैं ये दाग़
संशय है
संशय है
लेखक पर
पड़े न कोई छाप
पुरखों की सब धरीं किताबों
को पढ़-पढ़ कर
भाषा को कुछ नमक-मिर्च से
चटक बना कर
विद्या रटे
बने योगी के
भीतर पाप
राह कठिन को सरल बनाये
खेमेबाजी
जल्दी में सब हार न जाएँ
जीती बाजी
क्षण-क्षण आज
समय का
उठता-गिरता ताप
शोधों की गति घूम रही
चक्कर पर चक्कर
अंधा पुरस्कार
मर-मिटता है शोहरत पर
संशय है
ये साधक
सिद्ध करेंगे जाप।
पीते-पीते आज करीना
पीते-पीते आज करीना
बात पते की बोल गयी
यह तो सच है शब्द हमारे
होते हैं घर-अवदानी
घर जैसे कलरव बगिया में
मीठा नदिया का पानी
मृदु भाषा में एक अजनबी
का वह जिगर टटोल गयी
प्यार-व्यार तो एक दिखावा
होटल के इस कमरे में
नज़र बचाकर मिलने में भी
मिलना कैद कैमरे में
पलटी जब भी हवा निगोड़ी
बन्द डायरी खोल गयी
बिन मकसद के प्रेम-जिन्दगी
कितनी है झूठी-सच्ची
आकर्षण में छुपा विकर्षण
बता रही अमिया कच्ची
जीवन की शुरुआत वासना?
समझो माहुर घोल गयी
आज मुझमें बज रहा जो तार है
आज मुझमें बज रहा जो तार है,
वो मैं नहीं – आसावरी तू
एक स्मित रेख तेरी
आ बसी जब से दृगों में
हर दिशा तू ही दिखे है
बाग़-वृक्षों में, खगों में
दर्पणों के सामने जो बिम्ब हूँ,
वो मैं नहीं – कादम्बरी तू
सूर्यमुखभा! कैथवक्षा!
नाभिगूढ़ा! कटिकमानी
बींध जाते हृदय मेरा
मौन इनकी दग्ध वाणी
नाचता हूँ एक आदिम नाच जो
वो मैं नहीं- है बावरी तू
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परिचय : कवि प्रथम कविता कोश सम्मान, बुक ऑफ़ द ईयर अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं.
संपर्क: गौधूलिपुरम, वृन्दावन, मथुरा-281121 (उ.प्र.)
मो. 09456011560, abnishsinghchauhan@gmail.com