सुधीर कुमार प्रोग्रामर की पांच ग़ज़लें
1
लगाकर आग बस्ती से निकल जाने की आदत है
जिन्हें हर बात में झूठी कसम खाने की आदत है
चुराकर गैर के आंसू बना लेते हैं जो काजल
उन्हें खुशियों की इक दुनिया बसा जाने की आदत है
सजीले बागबानी में टहलने आ गए साहब
जिन्हें फूलों की रंगत पे बहक जाने की आदत है
इजाजत है नहीं कहना आवारापन को आवारा
बड़े हाकिम का बेटा है जुल्म ढाने की आदत है
जो मेहनत से हथेली पर हुनर बोये हुनर बांटे
उन्हें पाताल से पानी उठा लाने की आदत है
2
आचरण का यहां अपहरण हो रहा
एक दूजे से इतना जलन हो रहा
वक्त का मोल हमने सुना था कभी
जान से कीमती अब कफन हो रहा
थक गया चीख कर सच के दरबार में
झूठ का इस तरह जागरण हो रहा
हर शिकायत पे सेना लगा दीजिए
पालने का लला बदचलन हो रहा
देखकर देवताओं की आबादिया
फूल में खुशबुओं में घुटन हो रहा
3
लोग बहरे और गूंगे हो गए लगते
जलजला के डर से शायद सो गए लगते
ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश छोड़े पर
धूल कण में कूटकारी बो गए लगते
बोलते मिल्लत की बातें दुश्मनी पाले
लोग अक्सर ही दुधारी हो गए लगते
फिर इतर में तर के वादे लाद कर आये
पूछने पर लाज सारे धो गए लगते
देखकर थोड़ी कमाई लोभ में आते
बांट दी जब से खुशी तो खो गए लगते
4
सही गलत पर अड़ा हुआ है
जो रात भर में बड़ा हुआ है
वो दौड़ने का सिखाता नुस्खा
अभी अभी जो खड़ा हुआ है
धरा की थाली नहीं है खाली
जमीं में बखरा गड़ा हुआ है
धकेला अपने ही देवता को
अभी शरण में पड़ा हुआ है
भरा-भरा था चढ़ावा लेकिन
कहां ये खाली घड़ा हुआ है
5
कौन किस पर करे अब भरोसा
देवता ही करे जब तमाशा
वो मिठाई का क्या मोल जाने
जिसने चखा नहीं है बताशा
एक हल्की हंसी के लिए ही
फेक आय मुसीबत का पासा
भूख दम साध कर मुस्कुराई
देख थाली में पूजा परोसा
मौन होकर बहुत बोलते जो
वे समझते इशारों की भाषा
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परिचय : साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन
ग़ज़ल-संग्रह, कविता-संग्रह, कहानी व नाटक की कई पुस्तकें प्रकाशित
विभिन्न संस्थाओं ने किया सम्मान
पता : सुधीर कुमार प्रोग्रामर, अंगलोक, बायपास-रोड, सुल्तानगंज, भागलपुर
Mob : 9334922674