कहानी
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इम्तहान
- – डॉ. अनिता सिंह
कुमुद को लगा जैसे उसके दिमाग में धुँए का गुबार घुस रहा हो।धीरे-धीरे उसका पूरा शरीर धुंए के गिरफ्त में चला गया । नस-नस में जैसे नशा तारी हो रहा था। ऐसी गहरी नींद उसे पहले कभी नहीँ आई थी।
अचानक आयी तेज बारीश ने नींद से उसे जगा दिया।
आंटी …. आँखे खोलो।
पास खड़ा लामा चेहरे पर पानी के छींटे मार रहा था।
कुमुद की मूर्छा टूट गई।
लामा कह रहा था …
भगवान से प्रार्थना करो…
हिम्मत से काम लो…
अंकल को कुछ नहीँ होगा।
बोतल के ढक्कन से कुछ बून्द पानी के लगभग जबरन डाला लामा ने।
कुमुद की चेतना जैसे लौटी उसकी निगाह ऑपरेशन थियेटर की जल रही बत्ती पर पड़ी… वह फिर से महामृत्युंजय मन्त्र का अस्फुट जाप करने लगी। चित्त एकाग्र नहीं हो पा रहा था।
महामृत्युंजय मन्त्र के बीच हीं “सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो …..
दीनदयाल विरुद संभारि ,हरहुँ नाथ मम संकट भारी
ॐ त्रयम्बकं यजामहे…..
जलते बल्ब पर जैसे दृष्टि गयी कि वह मन में गुहराने लगी …..
हे ईश्वर ! मेरे पति की रक्षा करें।
कुशल को ऑपरेशन थियेटर में गए तीन घंटे बीत चुके थे ।
डॉ ने कहा था मामूली सा सिस्ट है,दो घंटे में हो जायेगा ऑपरेशन।
कुशल के साथ कौन है ? ऑपरेशन थियेटर के दरवाजे से सिर निकालकर नर्स ने पुकारा।
ज्ज्ज्जी मैं ….. !
दोनों हाथ जोड़कर दौड़ पड़ी कुमुद।
ये लो पुर्जा और सात यूनिट ब्लड का जल्द इंतज़ाम करो।
नर्स ने धीरे से दरवाज़ा बन्द कर लिया।
बिजली की गति से दौड़ गयी कुमुद। बैग खोलकर पैसे निकालना चाहा तो सलाई पर चढ़ा स्वेटर का सारा फंदा गिर गया। कितने प्यार से बना रही है कुमुद इस स्वेटर को। कुशल ने कहा था ,देखो न कितना दुबला हो गया हूँ, कोई स्वेटर नहीँ आयेगा।
नया बना दो।
सलाई पर चढ़े स्वेटर को बैग में ठूंसकर भागी कुमुद।
ऑपरेशन थियेटर की बत्ती जल रही थी।
आज का दिन कितना बड़ा हो गया है,ख़त्म होने का नाम ही नही ले रहा।
सोच रही थी कुमुद ।
कुछ लोग आपस में बात कर रहे थे…ब्लीडिंग रुक नहीं रहा,बचना मुश्किल है।
एक दूसरे स्वर ने कहा-ये पहला केस होगा डॉ दीवान का जो खराब हो जाएगा।
घड़ी की सुइयां कई मिनट से एक ही समय दिखा रही थी।
दीनदयाल बिरुद ….
हे भगवान…
आंटी पानी पी लो….
अरे ….कुछ नहीँ होगा अंकल को।
ऑपरेशन थियेटर का दरवाजा खुला…कुमुद के प्राण कंठगत हो आये।
डॉ दीवान ने अँगुली से इशारा करते हुये कहा -मिसेज सिन्हा। मेरे साथ आइये।
अपने चेंबर में चेयर पर बैठने से पूर्व पानी भरे ग्लास को गटकते हुये डॉ दिवान ने कुमुद को बैठने का ईशारा किया।
आप ध्यान से सुनिये मैडम। हमारे पास दूसरा कोई चारा नहीँ था। देखा न आपने पूरे सात घंटे चला है ऑपरेशन ।
क्या करता …चेस्ट ओपन करने पर पता चला, लंग पूरा गल चूका था।
रिमूव करना पड़ा।
दीनदयाल…….
धम्म से फर्श पर बैठ गई कुमुद।
धुँए का गुबार फिर से दिमाग में घुसने की कोशिस कर रहा था।
आंटी आपको डॉ कौर बुला रही हैं,ऑपरेशन थियेटर में।
लामा के टोकने पर नींद से लौटी कुमुद।
डॉ कौर देवी स्वरूपा हैं कुमुद के लिये।
बहुत स्नेह रखती हैं बीमार कुशल के लिए।एनीस्थिसिआ स्पेस्लिस्ट डॉ कौर।
जी मैडम..! कहते हुए आँख भर आयी कुमुद की ।
देखो कुमुद ! धैर्य से काम लो।
अभी हम कुशल को आई. सी .यु .में शिफ्ट कर रहे हैं,तुम साथ में रहो और कुशल से बात करने की कोशिश करते रहो नहीँ तो वो वेंटिलेशन पर चला जायेगा।
मैडम बाहर जाइये आप ! आई. सी. यु. के नर्स ने एक तरह से परे करते हुये कहा कुमुद को।
मैडम मैं हाथ जोड़ती हूँ ….डॉ कौर ने कहा है ,साथ रहने को।
अच्छा…. आँखे बड़ी करके कुमुद की ओर देखा नर्स लिली ने ,फिर दूसरी नर्स को इशारा करते हुए कहा ….देख लेना।
कुशल ने धीरे से पलकें उठायी। अपने ऊपर झुके कुमुद को देखकर धीमी आवाज़ में कहा -मैं ठीक हूँ।
फ़रवरी का महीना ऊपर से दिल्ली की सर्दी।उस रात जोर की बारिश हो रही थी।अस्पताल के पीछे महरौली स्थित वन विभाग । सियारों के रोने की आवाज़ रात को और भयावह बना रही थी।आई .सी .यु .के बाहर एक बरामदे में बारिश से बचने की नाकाम कोशिश में आधी भीगी कुमुद की नज़र आई. सी. यु .के दरवाजे पर जैसे टंग गयी थी।
फ़ड़फ़ड़ाता चमगादड़ बगल होकर गुजर गया। तभी लामा ने कहा,,,
आंटी ! तुम्हारे बेटे का फोन है।
‘तुम्हारा पेपर कैसा गया बाबू ‘?
कुमुद ने पूछा।
‘पापा कैसे हैं …बताइये पहले। ‘
‘आज ऑपरेशन हुआ। ”
‘क्या ,,,,आपने बताया नहीं’ ‘
‘आपका पेपर था न ‘।
हाँ माँ ,,,,, बोलिये….
‘बाबू .’……
‘हाँ माँ’ ….
‘पापा का एक लंग निकल गया बाबू .’…
दहाड़े मार कर रो रही थी कुमुद।
आंटी …मत रो। ठीक हो जायेंगे अंकल।
रोता हुआ लामा कह रहा था।
लामा। पूरा नाम हेमचंद लामा। अपने भाई के इलाज के लिये लाला रामस्वरूप हॉस्पिटल मेहरौली में आया है। कुमुद को अकेले सेवा में लगी देख मदद कर देता है।
दो महीने पहले सब कुछ कितना सही चल रहा था। बेटे को इंजीनियरिंग में भेज ,कुमुद संघर्षो की इतिश्री समझ रही थी। बिटिया का दसवीं का इम्तेहान था। बारहवीं के बाद उसे भी बाहर भेजेगी कुमुद। पति स्वस्थ नहीं रहते न। दोनों मोर्चो को सम्भालते हुए कुमुद बच्चों के लिए सपने देखा करती थी।
उस दिन ऑफिस के लिये निकलते कुमुद ने स्नेह से कुशल के गाल छुये।कुशल का शरीर तप रहा था।
……..आज चलिये डॉ के पास।
…… डॉ भी कहाँ समझ सका।दो दिन दवा खाने के बाद डॉ ने किडनी में पथरी का अंदेशा जताया ।
‘रेफर करवाओ कुमुद ! मुझे यहाँ के डॉ पर भरोसा नहीं…..
कहा था कुशल ने ।
लखनऊ पी .जी. आई . के किडनी विभाग ने कहा
‘छोटी सी पथरी है’।
घर आकर कुशल फिर बीमार हो गया।
बीस साल का पुराना मर्ज़ है अस्थमा ।
एक बार भी डॉ. ने एक्स रे सजेस्ट नहीं किया । अब डॉ . झा से दिखवायेगी कुशल को।
एक्सरे देखते हीं उबल पड़े डॉ. झा।
यु कीलर ….
यू मर्डरर…..
अब लेकर आई हो!
लेफ्ट लंग फट चूका है…।
उसी दिन निकल गई थी दिल्ली के लिये। …..!
मुँह से साँस लो कुशल..
बस ….दिल्ली पहुँचने भर की देरी है ।
ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट में पहला ऑपरेशन।
12 घंटे आई. सी. यु. में रखने के बाद दो बजे रात में सफदरजंग रेफर …….।
देख रहीं हैं आप …..फर्श पर भी ज़गह नहीं…।
छोटे डॉ ने कहा ….।
एक्स- रे प्लेट में सफेद पट्टियों को दिखाते हुए कहा डॉ दीवान ने…..सिस्ट है।
ऑपरेट करना होगा। चार यूनिट ब्लड का इंतेज़ाम कर लीजिये ।
ऑपरेशन का तीसरा दिन।
आई .सी .यु. में पेशेंट को देखने आये डॉ राशिद ने कुशल के बेड के पास उसकी छाती से लगे नली वाले कन्टेनर में लाल की ज़गह सफेद लिक्विड देखा तो तेजी से डॉ. दीवान के केबिन की ओर बढ़ चले।
बैठिये मिसेज सिन्हा ! दरवाजे की ओर पीठ किये बैठे डॉ दीवान ने जान लिया की आगंतुक कुमुद है।
देखिये,गूगल क्या लिखता है।
कम्प्यूटर खोलकर देखते हुये डॉ ने कहा।
दरअसल ऑपरेशन के समय कुशल का थोरेसिक डक्ट कट गया है। आप समझ रहीं हैं न…..
ये नली हार्ट को फैट और प्रोटीन प्रोवाइड करती है। यही वजह है कुशल के बॉडी से सफ़ेद लिक्विड निकलने का।
‘अब .’…?
‘अब क्या,,,वेट एंड वाच’
‘ खुद हील हो जाये तो ठीक वर्ना…. ‘
कहते हुए डॉ .दिवान चेम्बर से बाहर निकल गए।
पोस्ट में रहते हुये शोध का विषय बन गया कुशल का केस।हर दिन मेडिकल स्टूडेंट्स स्टडी के लिये आने लगे।
अस्पताल के लोग कुमुद को भक्तिन कहने लगे।
दिन रात सेवा,,,,,और मंत्र जाप।
जब भी कोई मिलने आता उसे बिठाकर कभी छतरपुर तो कभी महामाया मंदिर में आँचल पसार आती कुमुद।
एक दिन लामा किसी दरगाह से अभिमंत्रित जल और ताबीज़ ले आया।
सेहत लगातार गिर रही थी कुशल की।
प्यारी सी बिटिया जब भी फोन करती ,कहती- मम्मा मुझे आप लोगों के पास आना है।
बच्ची बहुत डिस्टर्ब हो गयी।
कैसे देगी बोर्ड एग्जाम।
आज कहने लगी -माँ ! घर के सामने बिल्ली रो रही है। कुमुद से उसे समझाते न बना ।
रोते हुए उसने नर्स को फोन दे दिया।
….बेटा ! जैसे हम तकलीफ में रोते हैं …बस …वैसे हीं पशु भी ….नर्स ने समझाया तब समझ सकी।
मिसेज सिन्हा…. दूसरा ऑपरेशन करना होगा। डॉ. ने सपाट स्वर में कहा।
आपने इससे पहले ऐसा ऑपरेशन किया है क्या ?
गुस्से में नाराज़ होकर चले गये डॉ खालिद।
साँस का परीक्षण करते हुये डॉ कौर ने कहा था –कुमुद ! अगला ऑपरेशन नहीँ सम्भाल पायेगा कुशल ।
पता भी है…ये केस एक्सपेरिमेंट बन गया है ।
मैडम ! आपको डॉ दीवान ने कॉन्फ्रेंस हॉल मे बुलाया है।
नर्स ने आकर बताया।
चारो तरफ़ से प्रश्नों के बौछारके बीच सभी एक ही बात दुहरा रहे थे ,,,,
आप उसका नाम बताइये जिसने आपको हमसे प्रश्न करने पर उकसाया है।
उनका सीधा शक डॉ .कौर पर था।
कोई विकल्प नहीँ मिसेज़ सिन्हा… समझिये।
दुबारा ऑपरेशन करना हीं पड़ेगा।
झिझकते हुए कहा डॉ. दिवान ने ।
सर्जरी के इतिहास में पहली बार ऑपरेशन थियेटर में अमूल क्रीम,दूध और रसायन (ब्लू) गया।
कुशल को सारी चीजें पिलाई गईं ताकि सर्जरी के समय थोरेसिक डक्ट नज़र आये।
कुशल ने ऑपरेशन थियेटर में जाने से पहले भर नज़र कुमुद को देखा फिर मन हीं मन ईश्वर की आराधना में लीन हो गया।
बेटी ने 108 हनुमान चालीसा बांटा है कुशल !
भाभी ने रुद्राभिषेक करवाया है ।
अस्पताल की नर्सें आज चर्च में कैंडल जला कर आई हैं।
भरोसा रखो !
कुछ नहीँ होगा तुम्हे !
रात भर समझाया है कुमुद ने।
दो घंटे बाद ऑपरेशन होना है।
डॉ .कौर ने डॉ दीवान का ध्यान कुशल के कन्टेनर की तरफ किया….
–सर ! जिसे चाय का फैट नहीँ पच पाता …देखिये ! क्रीम और दूध पीने के बाद भी अभी तक एक बूँद लिक्विड नहीँ आया।
मिरेकल……
कहते हुये डॉ दीवान ऑपरेशन थियेटर से बाहर आ गये।
पहली बार ऑपरेशन टेबल से बिना सर्जरी किये आ रहा हूँ।
ईश्वर ने हमारी प्रार्थना सुन ली ।
कुशल को बाहर लाया गया।
बहुत खुश थी कुमुद।
डॉ .दीवान के कुमुद को अपने केबिन में आने का इशारा किया।
देखिये … अड़तालिस घंटे ऑब्जर्ब करेंगे….उसके बाद हीं कुछ कह सकते हैं।
तब तक पेट में कुछ नहीँ जाना चाहिये।
दो दिन बाद… कन्टेनर में नारंगी रंग के तरल पदार्थ को देखकर डॉ दीवान के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं… देखा कुमुद ने।
वही हुआ जिसका अंदेशा डॉ .को था।
अंदर इंफेक्शन हो चुका था।
दस दिन बाद विश्व स्तरीय सेमिनार है ,मैं इस केस को डिस्कश् करके सॉल्व करूँगा।
बोलकर चले गये डॉ. दीवान।
आधा साल लगभग अस्पताल में कट गये। सुन्दर अंकल सुबह सुई लगाने आते तो कुमुद आशीर्वाद लेती और पूछती … कुशल कब ठीक होंगे बाबा… हरियाणवी में वो कहते-कदे न कदे ।
उलझे हुए ऊन के गोलों को सुलझाती कुमुद…..
सिस्टर कन्नड़ में गीत गुनगुनाती आती, पूछती -मेरे लिए टोपा बनायेगा….?
क्षीण मुस्कान से कहती कुमुद ……येस सिस्टर, व्हाई नॉट.
विश्व स्तरीय सेमिनार में डॉ दीवान ने इस केस को रखा।
डॉ .जॉन ने खुद कुशल को देखने का फैसला किया।
अमेरिका से सेमिनार में हिस्सा लेने आये डॉ. ने देखा और टांके काटकर नली निकाल दी।
डॉ .दीवान ने हिदायत देते हुये कहा …..आप दिल्ली से बाहर नहीँ जा सकतीं ।
पन्द्रह दिन मुश्किल भरे हो सकते हैं।
पन्द्रहवें दिन एक्स-रे देखते हुये डॉ. ने कहा…
‘आज मैं कह सकता हूँ कुशल बच गया’
इसे निमोथोरेक्स हुआ था और कैरोथोरेक्स होने का खतरा था।
हँसते हुए डॉ .दीवान ने कहा
” जाइये मिसेज सिन्हा….आप इम्तेहान में पास हो गयीं।”
कुशल ने अपनी कमजोर बांहे फैला दी। दोनों देर तक रोते रहे।
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परिचय : अनिता सिंह चर्चित लेखिका हैं.