विशिष्ट कवि :: डॉ पंकज कर्ण

बारिश की पहली फुहार

  • डॉ पंकज कर्ण

प्रेम से उपजे जज़्बातों
सूरज की किरणों
एवं कसमसाते हुए सागर के ज्वार-सा
प्रलयकारी समय
जब हार जाता है
अपनी ही चौखट पर,
जेठ की ताप से
फटे हुए धरती-सा होठ लिए
निर्निमेष आंखों से निहारता हुआ एक बच्चा
जिसके अमृत से तृप्त करता है अपना होंठ
वो माँ है

माँ काली है
महाविद्या है
दुर्गा है
दिव्यरूपा है
पवित्र भावनाओं से सिंचित अभिव्यक्ति है माँ

प्रकृति के कोख से जन्मे
आशा-निराशा का जल पीकर
दहकते चादर में लिपटी धरती के लिए
बारिश की पहली फुहार है माँ

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